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६ भैरव पद्मावती कल्प
दिरेफयुक्त लिख मान्तयुग्मं पष्ठत्वरौंकारयुतं पविन्दुः। स्परावृत पञ्चपुराणि वह्निः रेफात्कमाकोमर ही च कोणे ॥१॥ ब्लेंकाररुद्ध च तथा हृम्ही ब्लूचाररुद्धं च ौं तथैव । क्रमेण दिक्षु त्रिषु चाम्बिकायाः मत्र बहिर्वहिमरुत्पुरश्च ॥२॥
भा० टी०- और यौँ वीजोंको मोबहों स्वरोंसे घेरकर उनके चारों और पांच अग्नि मंडल बनाबे । उनमेंसे प्रथम मण्डलके तीनों कोनोंमें यं बीज, द्वितीयमें क्रों, तृतीयमें हों, चतुर्थमें ब्लेसे रुका हुदा हत्क्लीं बीज और पञ्जममें ब्लू से रुका हुषा झौं बीज लिखकर मण्डलोंके चारों ओर भम्बिका मन्त्र लिखे। और उसके वाहिर अग्नि मण्डल तथा वायु मण्डल बनावे।
मन्त्रोद्धार
"ॐ नमो भगवति भम्वे अम्बाले अम्विके यझदेबि य्यूं ब्लें हृक्की ब्लू ौ रः रः रः रः रः रां रां नित्ये क्लिन्ने मदद्रवे मदनातुरे ह्रीं क्रों अमुकी मभ षश्य कृष्टिं कुरु २ संवौषट् ।"
इष्टाङ्गनाकर्षणमाहुराद्या धत्ताताम्बूलविषादिलेख्यम् । यन्त्र पटे खपरताम्रपत्रे दिनत्रये दोपशिखामितप्तम् ॥३॥
भा० टी०-इस यन्त्रको धतूरे पानके रस और शङ्गीविष आदिसे बख, खर्पर या ताम्रपत्रपर लिखकर नीन दिनतक दीपककी शिखापळ तपानेसे यह इच्छित स्त्रीका आकषण करता है।