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________________ में भैरव पद्मावती कप प्रतिरूपहस्तखडगैनिहन्यमानारिरूपपरिवेष्ट्यम् । शत्रो मान्तरित समन्ततो वेष्टथेत्पिण्डैः ॥ १६ ॥ भा० टी०-शत्रुके नामके बाहिर प्रतिशत्रु (शत्रुके शत्रु) के हाथ शस्त्रसे मारे जाते हुवे शत्रुकी मूर्तिको बनाकर उसको चारों ओर शत्रुके नामके वाहिरके पिण्ड व्यू घेर दे। प्रतिरिपुबाजिमहागजनामान्तरितं समन्ततो मन्त्री । विलिखेदों हूं ह्रीं ऐ ग्लौं स्वाहा टान्तयुग्मान्तम् ॥ १७ ॥ फिर उसको निम्नलिखित मन्त्रसे घेर देवे । "ॐ ह्रीं ऐं ग्लौं स्वाहा ठः ठः अमुकल्य पट्टावं ॐ ह्र ही ऐं ग्लौं स्वाहा ठः ठः अमुकस्य पट्टगज ॐ ह्रीं ह्रीं ऐं ग्लौ स्वाहा ठः ठः ॥" (इस मंत्रमें अमुकके स्थान में शत्रुका नाम लिखा देना चाहिथे।) मन्त्रेण वेष्टयित्वाऽनेन ततो शत्रुविग्रहो लेख्यः । अष्टासु दिक्षु बहिरपि माहेन्द्रमण्डलं दद्य त् ।। १८ ॥ भा० टी०-फिर उसको निम्नलिखित मत्रसे वेष्ठित करके पाठों दिशाओं में शत्रुक्की मूर्ति लिखे और उसके वाहिर माहेन्द्र मण्डल बनावे भेदय२ ग्रस२ खादय२ मारय२ हुं फट् । प्रेतवनात्सञ्चालितमृतकमुखोस्थितपटेऽथवा विलिखे । कृष्णाष्टम्यां युद्धात्त्यक्तप्रागस्य संप्रामे ॥ १९॥ भा० टी०-इस यन्त्रको स्मशानसे लाए हुये मृतकके
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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