SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भैरव पद्मावती कल्प। [१५ भा० टी०-उस मन्त्रके पूर्वद्वारपर 'ॐ ह्रीं धरणेन्द्राय नमः', दक्षिण द्वारपर 'ॐ ह्रीं अघःच्छदनाय नमः', पश्चिम द्वारपर 'ॐ ह्रीं ऊईच्छदनाय नमः' तथा उत्तर द्वारपर 'ॐ ह्रीं पद्मच्छदनाय नमः' मन्त्रोंको प्रविटिख्यैतान्क्रमशः पूर्वादिद्वारपीठरक्षार्थम् । दशदिक्पालान्विलिखेदिन्द्रादीन् प्रथमरेखान्ते ।। १६ ।। भा० टी०-पूर्वादि द्वारोंके आसनों की रक्षाके लिये उनर द्वारोंपर क्रमशः लिखे, फिर प्रथम रेखाके अन्तमें निम्नलिखित प्रकारसे दश दिक्पालोंको लिखे। लरशषवयसहवर्णान्सबिन्दुःज्ञानष्टदिक्पतिसमेतान् । प्रणबादिनमोऽन्तगतानोंहीमधः उर्द्धच्छदनसंज्ञे च ।। १७ ।। भा० टी०-उन दशों दिक्पालोंको दिशाओंमें लिखनेका क्रम यह है पूर्व-ॐ ह्रीं लं इन्द्राय नमः। अग्नि-ॐ ह्रीं रं अग्नये नमः । दक्षिण-ॐ ह्रीं शं यमाय नमः। नैऋत्य-ॐ ह्रीं पं नैऋत्याय नमः। पश्चिम-ॐ ह्रीं वं वरुणाय नमः। वायव्य-ॐ ह्रीं यं वायव्याय नमः। उत्तर-ॐ ह्रीं सं कुबेराय नमः। ईशान-ॐ ह्रीं हं ईशानाय नमः। नीचे-ॐ ह्रीं अधःच्छदनाय नमः। . ऊपर-ॐ ह्रीं अर्द्धच्छदनाय नमः।,
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy