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________________ भैरव पन्नावची कल्प [१३. कर्ममें पबाल अर्थात् पल्लव मुद्रा, स्तंभन कर्ममें शंख मुद्रा, और मारण कर्ममें वन मुद्रा रखे । दण्डस्वस्तिकपङ्कजकुक्कुलिशोद्भद्रपीठानि । उदयार्कर क्तशशधरधूमहरिद्राऽसितो वर्णः ॥ ९ ॥ भा० टी०-आश्र्षण कर्ममें दण्डासन, वशीकरणमें स्वस्तिक आसन, शांतिक पौष्टिक कर्ममें कमलासन, विद्वेषण उच्चाटन कर्ममें कुक्कट भासन, स्तम्भन धर्ममें बज्रासन और निषेध अथवा मारण कर्म में विस्तीर्ण भद्र आसनका प्रयोग करे। आकर्षण कर्ममें उदय होते हुये सूर्यके जैसा वर्ण, वश्य कर्ममें रक्तवर्ण, शांतिक पौष्टिक कर्ममें चन्द्रमाके समान सफेदवर्ण, विद्वेषण उच्चाटन कर्ममें धूमवर्ण, स्तम्भन में हल्दी के समान पीतवर्ण, और निषेध तथा मारण कर्ममें कृष्णवर्णका प्रयोग करे। विद्वेषणाऽऽकर्षणचालनेषु हुं बौषडन्तं फडिति प्रयोज्यम् । वश्ये वषट वैरित्रधे च धे धे स्वाहा स्वधा शांतिकपौष्टिके च ॥ १० ॥ ___ भा० टी०-विद्वेपणमें हुं, आकर्षणमें संवौषट, उच्चाटनमें फट , वशीकरणमें वषट् , शत्रुके वध धे धे, स्तम्भनमें ठः ठः, शांति कर्ममें स्वाहा और पौष्टिक कर्ममें स्वधा नामके पल्लबका प्रयोग करे। स्फटिकप्रवालमुक्ताचामीकरपुत्रजीवकृतमणिभिः । अष्टोत्तरशतजाप्यं शान्त्याद्यर्थे करोतु बुधः ।। ११॥ . भा० टी०-शांतिकर्ममें स्फटिकमणि, वशीकरणमें प्रवालमणि (मूगा), पौष्टिककर्ममें मोती, स्तम्भनकर्ममें स्वर्णकी बनी हुई मणि
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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