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________________ है भैरव पदारती कल्प [ १२१ दौंके मन्त्र-पूर-ॐ जयायै स्वाहा । अमि-ॐ जम्भाय स्वाहा। दक्षिण-ॐ पिजयाय स्वाहा । नैऋत्य-ॐ मोहाय स्वाहा। पश्चिम-ॐ अजितायै स्वाहा । यायव्य-ॐ स्तम्भाय स्वाहा । उत्तर-ॐ अपराजितायै स्वाहा । ईशान-ॐ स्तंभिन्यै स्वाहा । '. म्य» गन्धनन्दुटकुसुमैनैवेधदीपधूएफलैः । परमेष्यन्त्रमन्त्रं भैरपद्मावती पादौ ।। ४६ ।। 'भा० टो-फिर इस परमेष्ठि यन्त्र, मन्त्र और पद्मावतीदेवीके चरणोंकी पन्दन, ममत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, और फलोंसे पूजा करे। परममयजनविरक्त शिष्यं जिनसमयदेवगुरुभक्तम् । कृतपख लंपारं मंस्नात मराभिमुडम ।। ४७ ।। भ.. टो० -पिर अन्य ज्ञान सौर पुरुषों के विस्त निनदेव और जैन शाल और जैन गुरमें भक्त मनेकाने शिपयको स्नान कराकर, पन तथा अलंकार पहिनाकर मण्डल के सामने लावे। संस्नाप्य चतुः कलः महिरण्यस्तं ततोऽन्यवादे न् । .. यत्त्वा तत्म मन्वं निवेदयेतगुरुकुलीयासम् ।। ४८ ।। मा टो-~-म शिष्य पहिले रब हुये चार शोखे
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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