SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भैरव पन्नापती कल्प [१११ भा० टी०-विषको दूर करने के लिये निम्न लिखित मंत्रको एकसौ आठ वार पढ़कर दष्ट पुरुषके सामने खूब बाजे बजावे । मन्त्रोद्धार ॐ नमो भगवती वृद्धगरुडाय सर्वविषनाशिनि छिन्द२ मिन्दर गृह२ एहि२ भगवतिविद्ये हर२ हुं फट स्वाहा । धृत्वार्द्धचन्द्रमुद्रां दक्षिणभागेऽह्निदंशिनः स्थित्वा । बदतु तव गौरिदानीं तस्करलोकेन नीतेति ।। २० ।। • भा० टी०-इसके पश्वव मंत्रो सर्पदष्ट पुरुषके दाहिनी भोर बैठकर वायें हाथके अंगूठे और तर्जनो अगलोसे अर्द्धचद्र मुद्रा बनाकर कहे 'तब गौरिदानीं तस्करलोकन नीता' अर्थात तेरी गौको अभीर चोर ले गये हैं। तं समाहत्यपादेन याहीत्युक्त स धावति । उत्थापयति तं शीघ्रं मन्त्रसामर्थ्यमीदृशम् ।। २१ ॥ भा० टी०-फिर उस दष्ट पुरुषको पैरखे मार कर कहे 'जा भाग जा' इस मंत्रकी सामर्थ्य ऐसी है कि वह यह सुनते ही मागने लगता है। नागाकर्षण मन्त्र नियुतजपात्संसिध्यति दशंशहोमेन फणिसमाकृष्टिः । प्रणवादिः स्वाहान्तश्चिरिचिरि शब्दादिको मंत्रः ॥२२॥ “ॐ चिरि चिरि इन्द्रवारुणि एहि२ कड२ स्वाहा ।" भा० टी०-यह नागाकर्षण मंत्र एक लक्ष जप और दशांश होमसे सिद्ध होता है। ..., , , ... .
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy