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________________ २०८] है भैरव पद्मावती प्रस (६) विषनाशन विधान जलभूमिवह्निमारुतगगनैः सम्माषयद्वयोपेतैः । भवति च विषापहारस्वर्जन्या पास्नादचिरात् ।। ९॥ " पक्षि ॐ स्वाहा सम्माबय परसावय ।" भा० टी०-इस मन्त्रको बायें हापकी तर्जनी द्वारा चलानेसे विष शीघ्र ही दूर हो जाता है। इति मिषनाशन विधान । (७) सचोद्य विधानमें विषसंक्रमण मन्त्र मरुदग्निवारिधात्रीव्योमपद संक्रमवीन द्वितीयम् । चालनयाऽनामिच्या मितरां मिषसंक्रमो भवति ॥ १० ॥ __“ स्वा ॐ पक्षि हा सक्रम २'व्रज ब्रज।" भा० टी०-इस मन्त्रको अनामिका द्वारा चलानेसे विष संक्रमण हो जाता है। नागावेशन मन्त्र व्योमजलवह्निपरन क्षितियुतमन्त्रागपत्यथावेशः । सक्षिपहः पक्षिपदः पठनेन कनिष्ठिमाभिचालनतः ।।१।। ___ "हा पॐ स्वाक्षि संक्षिपहः पक्षिपहः" भा० टी०-इम मन्त्रका बाए हाथफी फनिष्ठा द्वारा जपनेसे पुरुषके शरीर में नाग बावेश करता है। विषनाशन मन्त्र प्रथम कर्णजाप्येन भेरुण्हा निर्विषं कुरुते नरम् । विद्यासुवर्णरेखाऽपि दुष्टतोयामिषेमतः ।। १२ ।।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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