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________________ ९६] भैरव पद्मावती कल्प भा० टी०- इस चूर्णको पकाकर यदि सो पुरुषको और पुरुष स्त्रीको खाने पीने आदिमें देवे तो संसारभर वशमें, हो जाता है। पञ्चाङ्ग मल नेत्रश्रोतृमल शुक्र दन्तजिह्वा मल तथा । वश्यकर्मणि मन्त्रज्ञः पश्चाङ्गमलमुच्यते ॥ १०॥ भा० टी-आंख तथा कानका मल, वीर्य दांत और जीभके मैलोंको मंत्र शास्त्रियोंने वशीकरण कर्ममें पञ्चाङ्गमल कहा है। वश्य दीपक पञ्चपयस्तरुपयस्ता पोतक्यण्डकरसेन परिभाव्या। तिळतैलदीपवर्तित्रिभुवनजनमोहकृद्भवति ॥ ११ ॥ भा० टी०-बड़, गूळा, पीपल, पिलखन और अजीरके दूध तथा पद्धकी (पोतकी ) के अडेले रघमें वन कपात, आक, कमलसूत्र, संभलकी रुई और पटषन (सन) की बनी हुई (पचसूत्रवजि) बत्तीको भानना देकर काले तिलोंका दीपक जलानेसे तीनों लोक बशमें हो जाते हैं। __वशीकरण प्रयोग विषमुष्टिकन कहलिनीपिशाचिकाचूर्णमम्बुदेहभवम् । उन्मत्तकमाण्डगतं क्रयुकफल तद्वशं कुरुते ॥ १२ ।। भा० टी०-पोस्त (विषमुष्टि), कनक (काला धतूरा), हलिनी (कलिहारी), पिशाचिका (छोटो जटामांसी) को अपने मूत्रमें मिलाकर उन्मत्तक (सफेद धतूरे.).के बर्तन में सुपारी सहित रखनेसे वशीकरण होता है।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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