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________________ ८८] भैरव ती कल्प जाती (माती) पुष्पोंसे भक्तिपूर्वक रूप करनेसे 'सुन्दरी' नामकी देवी सिद्ध होती है । जपनेके मन्त्रका उद्धार 'ॐ सुन्दरी परमसुन्दरी स्वाहा | ब्रह्मा विसुन्दरीशब्द होमान्त वर्णिकान्तरे । अष्टपत्रेषु सर्वेषु विखेत्परमसुन्दरी ।। २० ।। भा० टा—एक अष्ट एक कमी फर्णिका' परम सुन्दरी स्वाहा' लिखकर आठों में 'ॐ सुन्दरी स्वाहा' दिखे। कृष्णवपूर्ण कुमारमृत्तिकाकृते पात्रे । बालकृत दीपेन्बोधवह्निभवे ॥ २१ ॥ भा० टी० – कुम्हारके हाकी मिट्टी के बनाये हुये दीप पात्र में काले तिलोंका तेल भरकर अबतकी बनी हुई बत्ती टाळकर वट वृक्षकी लड़की आगसे दीपकको जढावे | शेष क्रिया पहिले समान है । कर्णपिशाचनी मन्त्र श्रवणपिशाचिनि मुण्डे स्वाहान्तः प्रणवपूर्वको ध्धायः । सिध्यति च लक्षजाप्पाणपिशाचीत्ययं मन्त्रः ॥ २२ ॥ 'ॐ श्रवणपिशाचिनि मुण्डे स्वाहा ।' भा० टो०- यह कर्णपिशाचिनी मंत्र एक बक्ष जपसे सिद्ध होता है। मत्रपरितकुष्टहृन्मुख र्ण द्वि-युगलमा यि । सुप्तस्य कर्णमूले कथयति यञ्चिन्तितं कार्यम् ॥ २३ ॥ भा० टी० - इस मनसे कूठको २१ बार अभिमंत्रित करके उसको पीसकर हृदय, मुख, दानो कान और दोनों पैरों पर
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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