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________________ र भैरष पद्मावती काप [८३ अष्टम परिच्छेद (निमित्ताधिकार) दर्पण निमित्तकी प्रथम सिद्धि सिध्यति सहस्रजाप्येर्दशगुणितैः प्रणवपूर्वहोमान्त्यः । दर्पणनिमित्तमन्त्रश्चलेचुलेप्रभृतिनोच्चार्यः ।। १ ॥ दर्पण निमित्त नामक निम्नलिखित मंत्र दस सहस्र जापसे सिद्ध होता है___ भा० टी०--"ॐ चलेचुले चुण्डे कुमारिकयोरङ्ग प्रविश्य यथामूतं यथाभव्यं यथासत्य भवति दर्शय२ भगवति मा विलम्बय विलम्पय ममाशामवयं पूरयर स्वाहा।" सप्तवाराभिमन्त्रित गोदुग्ध पाययेत्कुमारिकयोः ब्राह्मणफुलप्रसूत्योः तयोर्द्वयोः सप्तवत्सरयोः ।। २ ।। भा० टी०-इम मन्त्रसे गोदुग्धको मातबार अभिमंत्रित करके उसे ब्रह्मणकुलोत्पन सात२ वर्षकी दो कन्या को पिलादे । सस्ताप्य ततः प्रातर्दत्वा ताभ्यामथ प्रसूनादीन् । मृभ्यामपतितगोमयसम्मार्जित भूतले स्थित्वा ॥३॥ भा० टी०-फिर प्राःतकाल स्नान करके पृथिवीपर न गिरे हुये गोयरसे पुते हुये स्थानमें खड़ा होकर उन दोनों कुमारियोंको पुप्प आदि देकर। चतुरस्त्रमण्डलथं कलशं गन्धोदकेन पूरिपूर्णम् । . तस्योपर्यादर्श निवेशयेत्पश्चिमाभिमुखम् ॥ ४॥
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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