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________________ सत्तमस्त अङ्गस्स . तहा सावयधर्म पडिवज्जइ। सवेव' वत्तव्वया जाव* पडिलासेमाणे विहरइ ॥ १६३॥ ___ तर णं से कुण्डकोलिए समावासर अन्नया कयाइ पुवावरण्हकालसमयंसि' जेणेव' असेगवणिया, जेणेव पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, २त्ता नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, २त्ता समणस्त भगवा महावीरस्स अन्तियं धम्मपत्तिं उवसम्पज्जित्ताणं विहरइ ॥१६४॥ तर णं तस्स कुण्डकालियस्त समणवासयस्स” एगे देवे अन्तियं पाउन्भवित्या ॥ १६५॥ तर णं से देवे नाममुद्दे १ च उत्तरिजं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ१२, २त्ता सखिसिणि३ अन्तलिक्वपडिवन्ने कुण्ड कोलियं समणेवासयं एवं वया * Supply the whole account from $S 10-65, mutatis mutandis. १ B D से सव्वे, E से सब्वे for सब्वेव ; F सव्वेवि । २DE om. ३ D E कयावि | 8 E पुव्वावरण | ५ E om. जे० असो। ६ F पळवी०, G वट्टए । ७ E नामामु०, F • मुद्दयं । - E उत्तरियगं । ६E अंतिये । १० A B om. ११ । नामामुदं। १२ D E F G गिण्हइ, see Hem. IV, 209. १३ B D E णि, D' सखिंख० ।
SR No.009989
Book TitleUpasaka Dasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA F Rudolf Hoernle
PublisherBibliotheca Indica
Publication Year1890
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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