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________________ [२४] दिट्ठपञ्ञत्ति - ९० दिट्ठिपटिवेधेति – २०३ दिट्ठिब्यसनं - १९२ दिट्ठिविपत्तीति - १५० दिट्ठिविसुद्धि - १५०, १५१ दिट्ठीति - १५५, १८८ दिपादानं - १८८ दिट्टोघो - १८८ दिट्ठ - ६६, ८८, १०६, १८९ दित्तोति - ११ दिन्नादायिनोति - १२६ दिब्बगन्धं – ४४,४७ दिब्बचक्खु - २३, १६७, २२४ दिब्बचक्खुत्राणं- - १७२ दिब्बचक्खुपञ्ञ - २२४ दिब्बचक्खुपादकज्झानसमापत्ति - ६४ दिब्बयानं - १३४ दिब्बसोतत्राणं - ५२ दिवास - १७२ दीघङ्गुलिमहापुरिसलक्खणं - ९७ दीघनिकाये - १८२, १८३ दीघपहिको - ९८ दीघपासादो - ८० दीघभाणकमहासीवत्थेरो - ५८ दीघोति - १३८ दीपङ्करोति - १७३ दीपसिखा - ५६ दुक्कटमत्तं - २१ दुक्खक्खयगामिनियाति - १९४ दुक्खदुक्खताति - १५८ दुक्खदोमनस्सानं - १८३ दुक्खधम्मानन्ति - ११६ दुक्खनिरोधगामिनी - ६६,८९ दुक्खनिरोधोति - ६६,८९ दुक्खपटिपदा - ६७ Jain Education International दीघनिकाये पाथिकवग्गट्ठकथा दुक्खपरिजाननो - ८९ दुक्खवेदना - २१३, २१४ दुक्खवेदनियो - १४३ दुक्खवेदनं - १५८ दुक्खति - १९७ दुक्खसमुदयोति - ६६, ८९ दुक्खस्सन्तकिरियायाति - २१८ दुक्खाति- १५८ दुक्खानुपस्सनात्राणे - १९७ दुक्खानुपस्सनं - १८२ दुक्खोति - ४२ दुक्खं - १३, ६२, ८४, १०१, १०३, ११६, १४३, १४४, १४६, १५८, १६२, १८४, १८७, १९४ दुच्चरितन्ति - १५२ दुच्चरितानि - १५२, १९० दुतियज्झानसमाधि - १६८ दुतियज्झानसमापत्ति - १६९ दुतियज्झानसुखेन - १६६ दुतियपादेन - ९४ दुतियमग्गो - ६५ दुतियं ज्ञानं - ५१, १८२ दुप्पच्चक्खकरो - २१९ दुप्पटिनिस्सग्गीति - १९९ दुप्पटिविज्झाति - २२२ दुप्पटिविज्झोति - २१९, २२१ दुस्सीलोति - ६८, १२१ दूतेय्यपहिनगमनानुयोगप्पभेदं - १७८ देव्यधम्मेन - ३१ देवदत्तो - १९० देवपुत्तमारोपि - २७ देसनाञाणकुसलतं - ७० देसनासवनानि - १६५ देसेतीति - ६० दोमनस्सन्ति - ११६ दोमनस्ससङ्घातं - ७ 24 [द-द] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009981
Book TitlePathikvaggatthakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Buddhism
File Size11 MB
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