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________________ [१६] ऋद्धिपादों को भावित करने से ही होती है। महाब्रह्मा भी इन्हीं चार ऋद्धिपादों को भावित करने से महान ऋद्धि वाले महानुभाव हुए हैं। * सब कुछ जाननहार, देखनहार, अरहंत अवस्था प्राप्त, सम्यक संबुद्ध को सुख की प्राप्ति के लिए तीन अवकाश प्राप्त हैं- १. भोगों में और अ-कुशल धर्मों में न लगने से उत्पन्न होने वाला सुख, और फिर इससे बढ़ कर सौमनस्य; २.काया, वाणी और चित्त के स्थूल संस्कारों के शांत हो जाने से उत्पन्न होने वाला सुख, और फिर इससे बढ़ कर सौमनस्य; और ३. अविद्या के दूर हो जाने तथा विद्या के जागने से उत्पन्न होने वाला सुख, और फिर इससे बढ़ कर सौमनस्य। __ * सब कुछ जाननहार, देखनहार, अरहंत-अवस्था प्राप्त, सम्यक संबुद्ध द्वारा कुशल की प्राप्ति के लिए चारों स्मृति-प्रस्थान प्रज्ञप्त किये गये हैं। कौन से चार ? काया में कायानुपश्यी होकर विहरना, वेदनाओं में वेदनानुपश्यी होकर विहरना, चित्त में चित्तानुपश्यी होकर विहरना, और धर्मों में धर्मानुपश्यी होकर विहरना । * सब कुछ जाननहार, देखनहार, अरहंत-अवस्था प्राप्त, सम्यक संबुद्ध ने सम्यक समाधि की भावना और परिशुद्धि के लिए सात समाधि-परिष्कारों को अच्छी तरह प्रज्ञप्त किया है। कौन से सात ? सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्मांत, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम और सम्यक स्मृति । सम्यक दृष्टि वाला मनुष्य सम्यक संकल्प में समर्थ होता है, सम्यक संकल्प वाला सम्यक वाणी में, सम्यक वाणी वाला सम्यक कर्मांत में, सम्यक कर्मांत वाला सम्यक आजीव में, सम्यक आजीव वाला सम्यक व्यायाम में, सम्यक व्यायाम वाला सम्यक स्मृति में, सम्यक स्मृति वाला सम्यक समाधि में, सम्यक समाधि वाला सम्यक ज्ञान में और सम्यक ज्ञान वाला मनुष्य सम्यक विमुक्ति में समर्थ होता है जिसे सम्यक प्रकार से कहने वाले मनुष्य कहते हैं- भगवान का धर्म स्वाख्यात (सुंदर प्रकार से कहा गया) है, सान्दृष्टिक (इसी संसार में साक्षात्कार किये जाने के योग्य) है, अकालिक (सद्यः फलप्रद) है, एहि-पश्यिक ('आओ देखो।' का भाव जगाने वाला) है. औपनयिक (निर्वाण के समीप ले जाने वाला) है, प्रत्येक (हर एक) के लिए हितकारी है और विज्ञों (पंडितों) द्वारा ज्ञेय है । जो कोई बुद्ध, धर्म तथा संघ में स्थिर रूप से प्रसन्न हैं और उत्तम प्रिय शील से युक्त हैं उनके लिए अमृत (निर्वाण) का मार्ग खुला हुआ है। तत्पश्चात ब्रह्मा ने घोषणा की कि चौबीस लाख से भी अधिक मगध के परिचारक अतीत 26 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009977
Book TitleDighnikayo Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Buddhism
File Size13 MB
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