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________________ [४२] व्यक्ति नदी के उस पार जाने की इच्छा होने पर भी उस पार नहीं जा सकता । (ये पांच 'कामभोग' आर्य-विनय में 'सांकल' अथवा 'बंधन' कहलाते हैं ।) _ऐसे ही ब्राह्मण बनाने वाले धर्मों को छोड़ कर और अ-ब्राह्मण बनाने वाले धर्मों को अपना कर पांच नीवरणों से ढंके हुए विद्य ब्राह्मण मृत्यु के पश्चात ब्रह्मा की सलोकता प्राप्त करें, ऐसा नहीं हो सकता - जैसे नदी के इस पार अपने आप को सिर तक ढांपे हुऐ कोई व्यक्ति नदी के उस पार जाने की इच्छा होने पर भी उस पार नहीं जा सकता । (ये पांच 'नीवरण' आर्य-विनय में 'आवरण' अथवा 'अवनाहन', अर्थात, बंधन कहलाते हैं ।) तदनंतर भगवान ने यह भी स्पष्ट किया कि ब्रह्मा और विद्य ब्राह्मणों के गुण एक दूसरे के सर्वथा विपरीत हैं । ब्रह्मा अ-परिग्रही, अ-वैरी, अ-द्रोही, संक्लेश-रहित और वशवर्ती है जबकि ब्राह्मण परिग्रही, वैरी, द्रोही, संक्लेश-युक्त और अ-वशवर्ती हैं । उपास्य और उपासक के गुणों में इतना अंतर होने पर किसी त्रैविद्य ब्राह्मण का मृत्यु के पश्चात ब्रह्मा की सलोकता प्राप्त करना संभव नहीं हो सकता। तब वासेट्ठ माणवक ने भगवान से प्रार्थना की कि आप ही ब्रह्मा की सलोकता के मार्ग का उपदेश करें। इस पर भगवान ने कहा कि जब संसार में कोई तथागत पैदा होता है और उसके द्वारा साक्षात्कार किये गये धर्म के प्रति श्रद्धावान हो कर कोई व्यक्ति शीलसंपन्न हो जाता है और अपने चित्त से नीवरण दूर कर अपने भीतर उत्तरोत्तर प्रमोद, प्रीति, प्रश्रब्धि और सुख अनुभव करने लगता है, इससे उसका चित्त खूब समाहित हो जाता है। ऐसे समाहित चित्त से जैसे-जैसे मैत्री, करुणा, मुदिता अथवा उपेक्षा को भावित किया जाता है वैसे-वैसे ब्रह्मा की सलोकता का मार्ग खुलता जाता इस प्रकार ब्रह्म-विहार करने वाला व्यक्ति अ-परिग्रही. अ-वैरी, अ-द्रोही, संक्लेश-रहित और वशवर्ती होता है। ब्रह्मा के भी यही गुण हैं । अतः ब्रह्म-विहार करने वाला व्यक्ति ब्रह्मा के समान गुणों वाला हो कर मृत्यु के उपरांत ब्रह्मा की सलोकता प्राप्त कर लेता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009976
Book TitleDighnikayo Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith, Buddhism, R000, & R005
File Size13 MB
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