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________________ [१५] (३) कंप्यूटर के लिए ऐसे प्रोग्राम तैयार किये जा रहे हैं जिनसे कि बँगला, गुजराती आदि भारत की अनेक लिपियों में तथा भ्रम, सिंहली, थाई और रोमन लिपियों में भी इस संस्करण का सारा साहित्य सरलता से लिप्यंतरित हो कर प्रकाशित किया जा सकेगा। इन प्रोग्रामों के कारण कंप्यूटर द्वारा स्वतः ही लिप्यंतर हो जाएगा। कठिन मानवी लेखन-श्रम की आवश्यकता नहीं होगी। (४) शोध-पंडितों के लाभार्थ विन्यास ने कंप्यूटर के ऐसे प्रोग्राम भी तैयार करवाये हैं जिनसे कंप्यूटर द्वारा अनुसंधान-कार्य में अपूर्व सहायता मिल सकती है जैसे कि इस संस्करण के किसी भी ग्रंथ अथवा सारे वाङ्मय में किसी भी उद्धरण की त्वरित गति से खोज करना सरल हो गया है। यह खोज केवल शब्दों की ही नहीं बल्कि गाथाओं, वाक्यों अथवा वाक्यांशों की भी हो सकती है। इन प्रोग्रामों के कारण शोध-पंडितों को इस संस्करण के आधार पर शोध कर सकने के अनेक नये आयाम खुल गये हैं । जो काम अनेक लोगों के मानवी श्रम से भी शुद्ध रूप में कर पाना कठिन था, वह अब आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों द्वारा द्रुत गति से नितांत निर्दोष रूप में किया जा सकना सहज हो गया है। ऐसे अनेक विशिष्ट प्रोग्राम बनवा सकने में 'विपश्यना विशोधन विन्यास' को आशातीत सफलता मिली है। (५) शब्दानुक्रमणिका विशोधन के लिए अत्यंत आवश्यक है । कंप्यूटर के ही कारण इसे अत्यंत बहद रूप में सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है। (६) शब्दानुक्रमणिका के अतिरिक्त गाथाओं की सूची भी दी जा रही है, जो कि शोधकों के लिए लाभदायक सिद्ध होगी। (७) लंदन की पालि टेक्स्ट सोसायटी ने जो ग्रंथ प्रकाशित किये हैं उनके संदर्भ-विलोकन की समुचित सुविधा भी अलग से प्रदान की गयी है। (८) तिपिटक में विपश्यना, प्रज्ञा, निरोध आदि से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंध रखने वाले अंशों को अलग टाईप के अक्षरों में दर्शाया गया है, जिससे साधकों का ध्यान उनकी ओर सहज ही आकृष्ट हो सके और इसके फलस्वरूप वे साधना के क्षेत्र में अधिक उत्साहित हो आगे बढ़ सकें और विशोधक इस पर सरलतापूर्वक विशेष विशोधन कार्य कर सकें। 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009976
Book TitleDighnikayo Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith, Buddhism, R000, & R005
File Size13 MB
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