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________________ ८२ सद्धर्मसंरक्षक बिना ही इनमें से एक भाई रत्नचन्द बोल उठा-कहने लगा कि "यह बात सर्वथा झूठी है। क्यों मिथ्या बोलते हो कहते हो गौतमस्वामी ने मुखपत्ती बाँधी थी ? परन्तु उन्होंने मुखपत्ती नहीं बाँधी थी । मुँहपत्ती तो बाद में किसी आचार्यने बाँधी है और उसने गण समझ कर ही तो बाँधी होगी? इसलिये बाँधनी उचित है।" यह भाई इन लोगों में बहुत बडा विद्वान पंडित-शास्त्री माना जाता था। आपने कहा- "तुम कहते हो कि किसी आचार्य ने गुण समझ कर बाँधी होगी । यदि मुँहपत्ती बाँधने में गुण होता तो, गणधरों, पूर्वाचार्यों, गीतार्थों, श्रुतकेवलियों, चतुर्दश-पूर्वधारियों आदि मुनिराजों ने क्यों नहीं बाँधी? क्या मुख पर मुंहपत्ती बाँधनेवाले साधु-साध्वीयों, गणधरों, श्रुतकेवलियों, पूर्वाचार्यों, गीतार्थों से अधिक ज्ञानवान और बुद्धिवान हैं अथवा विशिष्ट ज्ञानी है ? ऐसा तो तुम भी नहीं मानोगे? ऐसी चतुराई तो कोई भी समझदार व्यक्ति स्वीकार नहीं करेगा और न ही कोई इस चतराई की प्रशंसा ही करेगा । हम तो वही मानेंगे जो तीर्थंकरों, गणधरों, श्रुतकेवलियों ने कहा है और हमें वही प्रमाण है। आगमों में तीन लिंग कहे हैं-१स्वलिंग, २-अन्यलिंग, ३-गृहलिंग । जो वेष जैन मुनि के लिये आगमों में फरमाया है वह वेष उसे धारण करनेवाला 'स्वलिंगी' है। गृह में रहनेवाला व्यक्ति जिस वेष को स्वीकार करता है वह 'गृहलिंगी' कहलाता है। इन दोनों को अतिरिक्त जितने भी वेषधारी हैं वे सब 'अन्यलिंगी' हैं । ऐसा आगमों में श्रीगणधरदेवों ने फरमाया है। साधुओं में मुखखुला लिंग तथा मुखबंधा लिंग दोनों प्रत्यक्ष जुदा लिंग हैं। इन दोनों में 'स्वलिंग' किस को मानना यह Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [82]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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