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________________ ७६ सद्धर्मसंरक्षक फिसाद ? देखा तुम्हारा साधुपना! जाओ अपने ठिकाने पर जाकर बैठो। देख ली तुम्हारी विद्वता !” तब गंगाराम खिसिया सा गया और अपने साधुओं से कहने लगा कि "बूटेराय यहाँ बहुत बार आता रहता है इसलिये यहाँ के लोग पहले से ही इसके अनुरागी हैं। यही कारण है कि यहाँ पर इसका वेष कोई भी उतारने नहीं देता और न ही कोई इसका गला दबोचने का साहस करता है । इसलिये यहाँ पर न तो यह ऐसे मानने ही वाला है और न ही इसका वेष छीनने का कोई साहस कर सकता है। अब यहाँ से यह अम्बाला जा रहा है। पहले तो वहाँ के भाई इसके अनुयायी थे । अब वहाँ इसके बहुत विरोधी हो चुके हैं। इसलिये हमें वहाँ पहले पहुँचकर इसके विरोध का वातावरण तैयार करना चाहिये और श्रावको तथा वैश्नवों को इसे रास्ते पर लाने के लिये तैयार करना चाहिये । फिर उनको कहेंगे कि तुम लोग बूटेराय को सीधा करो। यदि वहां के भाई हमारा साथ देंगे तो काम बनने में देरी नहीं लगेगी।" ऐसा निश्चय करके गंगाराम आदि बहुत से साधु-साध्वीयों ने अम्बाला शहर में जाकर डेरे डाल दिये और वहाँ पहुँचकर आपके विरुद्ध लंगर लंगोटे कसकर आपकी वाट देखने लगे। आप दोनों गुरु-चेले ने चार-पाँच दिन पटियाला में स्थिरता कर अम्बाला की ओर प्रस्थान किया। ग्रामानुग्राम विहार करते हुए जब आप अम्बाला के समीप पहुँचे, तो आपके चेले मुनि प्रेमचन्द ने आपसे कहा "गुरुदेव ! हम लोगों को अम्बाला शहर में नहीं जाना चाहिये, क्योंकि वहाँ जाने से हमें उपद्रव और उपसर्ग होने की संभावना है। इसलिये हमें अम्बाला छावनी जाकर ही ठहरना Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [76]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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