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________________ ४२ सद्धर्मसंरक्षक 'संप्रमृज्य' विधिना तेन कायं तत्र भुञ्जीत 'संयतो' रागद्वेषावपाकृत्येति सूत्रार्थः ।" भावार्थ - ग्रामादि से गोचरी लाकर आहार करने के निमित्त स्थानवाले गृहस्थी से आज्ञा लेकर एकान्त स्थान में जाकर ईर्यावही पडिकमे । तदनन्तर हत्थग अर्थात् मुखवस्त्रिका पडिलेहे। उस से विधिपूर्वक शरीर की पडिलेहणा करे । उसके बाद समभावपूर्वक एकांत में आहार करे। इस गाथा में मुखवस्त्रिका के लिये प्रयुक्त हुआ शब्द 'हस्तकं मुखवस्त्रिका के हस्तगत होने की ओर ही संकेत करता है। इसको अधिक स्पष्ट समझने के लिये और प्रमाण देता हूँ १. स्थानकमार्गियों के उपसंप्रदाय तेरापंथी पंथ के आचार्य श्रीतुलसी गणिजी ने अपने द्वारा संपादित दशवैकालिक की हत्थगं वाली गाथा की टिप्पणी नं० २०२ से २०४ तक में पृष्ठ २७ में लिखा है कि- "अनुज्ञा लेकर (अणुन्नवेत्ति) स्वामी से अनुज्ञा प्राप्त करने की विधि इस प्रकार है - 'हे श्रावक ! तुम्हें धर्मलाभ है। मैं मुहूर्तभर यहाँ विश्राम करना चाहता हूँ।' अनुज्ञा देने की विधि इस प्रकार प्रकट होती है - गृहस्थ नतमस्तक होकर कहता है - 'आप चाहते हैं वैसे विश्राम की आज्ञा देता हूँ।' छाये हुए एवं संवृत स्थान में (पडिछन्नम्मि संवुडे) । जिनदासचूर्णि के अनुसार 'पडिछन' और 'संवृत' ये दोनों शब्द स्थान के विशेषण हैं। उत्तराध्ययन में ये दोनों शब्द प्रयुक्त हुए हैं, शान्त्याचार्य ने इन दोनों को मुख्यार्थ में स्थान का विशेषण माना है और गौणार्थ में संवृत को भूमि का विशेषण माना है। बृहत्कल्प के अनुसार मुनि का आहार स्थल 'प्रच्छन्न' ऊपर से छाया हुआ और 'संवृत' पार्श्वभाग से आवृत होना चाहिये । इस दृष्टि से प्रतिच्छन्न और संवृत दोनों विशेषण होने चाहिये । हस्तकं से (हत्थगं) हस्तक का अर्थ मुखपोतिका मुखवस्त्रिका होता है । कुछ आधुनिक व्याख्याकार 'हस्तक' का अर्थ पूंजनी (प्रमार्जनी) करते हैं। किन्तु यह साधार नहीं (बिना आधार के) लगता है। ओघनियुक्ति आदि प्राचीन ग्रंथो में मुखवस्त्रिका का उपयोग प्रमार्जन करना बतलाया है । पात्रकेसरिका का अर्थ होता है पात्र Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [42]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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