SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्य प्ररूपणा की और उपस्थिति में पाँच-छह दिनों तक इस विषय पर खूब चर्चा चलती रही । इस चर्चा में सबने बडा रस लिया । लाला कर्मचन्दजी आपकी दोनों बातों से सहमत हो गये । इनके साथ दो-चार परिवारों को छोड कर सब संघ ने आपकी श्रद्धा को जैन आगमानुकूल सच्ची मानकर स्वीकार कर लिया। पंजाब में सर्व प्रथम इस चर्चा की समाप्ति पर वि० सं० १८९८ (ई० स० १८४१) में अपने पिता लाला धर्मयशजी दुग्गड के साथ लाला कर्मचन्दजी शास्त्री ने अपने साथ दो सगे छोटे भाइयों (लाला मथुरादासजी और लाला गंडामलजी) के परिवारों के साथ वीतराग केवली भगवन्तों द्वारा प्ररूपित शुद्ध सनातन मूर्तिपूजक श्वेतांबर जैन धर्म को स्वीकार कर लिया। लाला कर्मचन्दजी के स्नेही मित्र लाला गुलाबरायजी बरड तथा इनके छोटे भाई लाला लद्धामलजी ने भी अपने-अपने परिवारों के साथ आप की श्रद्धा को स्वीकार कर लिया। फिर क्या था ? दो-चार परिवारों को छोडकर सबने आप (बूटेरायजी) की श्रद्धा को स्वीकार कर लिया। यही ऋषि बूटेरायजी हमारे चरित्रनायक हैं। कुछ दिनों के बाद ऋषि अमरसिंहजी भी अपने तीन साधुओं के साथ गुजरांवाला में आ पहुचे । उनके पास श्रावक भाई गये । लाला गुलाबराय बरड भी अपने छोटे भाई लाला लद्धामलजी के साथ गये। उनसे ऋषि अमरसिंहजी बोले- "भाइयो ! बूटेराय की महाखोटी श्रद्धा है, वह स्वयं भी डूबेगा और तुम लोगों को भी ले डूबेगा । प्रतिमा पूजने की और मुँहपत्ती न बाँधने की उसकी श्रद्धा है। मुँहपत्ती बाँधनेवालों को अन्यलिंगी-कुलिंगी तथा जिनप्रतिमा के विरोधियों को पाखंडी और निन्हव कहता है। इस प्रकार हमारे पंथ Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [29]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy