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________________ २२० सद्धर्मसंरक्षक १८- वि० सं० १९३२ (ई० स० १८७५) में अहमदाबाद में पंजाब से आये हुए ऋषि आत्मारामजी को उनके १५ शिष्योंप्रशिष्यों के साथ स्थानकमार्गी अवस्था का त्याग कराकर संवेगी दीक्षा का प्रदान करना । श्रीआत्मारामजी को अपना शिष्य बनाकर नाम आनन्दविजय रखना । शेष १५ साधुओं की उन्हीं के शिष्योंप्रशिष्यों के रूप स्थापना करना (आनन्दविजयजी वि० सं० १९४३ में पालीताना में आचार्य बने, नाम विजयानन्दसूरि) १९- वि० सं० १९३२ (ई० स० १८७५) में आपकी निश्रा में मुनि आनन्दविजय (आत्मारामजी) तथा शान्तिसागर के शास्त्रार्थ में मुनिश्री आनन्दविजयजी की विजय। २०- वि० सं० १९३२ से १९३७ (ई० स० १८७५ से १८८०) तक अहमदाबाद में आत्मध्यान में लीन । २१- आपने अनेक बार सिद्धगिरि आदि अनेक तीर्थों की यात्राएं संघो के साथ तथा अकेले भी की। २२- वि० सं० १९३८ (ई० स० १८८१) चैत्र वदि ३० को अहमदाबाद में आपका स्वर्गवास । श्रीबुद्धिविजयजी द्वारा क्रांति १- व्याख्यान वाँचते समय कानों के छेदों में मुखपत्ती डालकर व्याख्यान न करना । २- चैत्यवासी यतियों, श्रीपूज्यों, गोरजी का श्वेताम्बर जैनसाधु के वेष में परिग्रहसंचय तथा जिनचैत्यों में निवास एवं जैनशासन विरुद्ध आचार होने के कारण, ऐसे असंयतियों की भक्ति-पूजा का विरोध। Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [220]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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