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________________ श्री बुद्धिविजयजी महाराज के शिष्य २११ x ३-४. नारायण ऋषि तथा उसका एक साथी अन्त तक लुंकामती-स्थानकवासी रहे। ५. वि० सं० १९०२ में प्रेमचन्द ने लुंकामत की दीक्षा ली । वि० सं० १९११ तक आपके साथ रहा । इसी संवत में गिरनार में स्वर्गवास । (संवेगी दीक्षा ग्रहण नहीं की) x ६. वि० सं० १९०८ में दिल्ली में वृद्धिचन्द के साथ जीवन नामक एक पंजाबी अरोडे ने दीक्षा ली । नाम आनन्दचन्द रखा । गुजरात जाते हुए रास्ते में दीक्षा छोड गया । x ७. धर्मचन्द ने स्थानकवासी दीक्षा ली । बाद में दूसरे स्थानकवासी साधुओं से जा मिला। ८. वि० सं० १९०२ में मूलचन्द बीसा ओसवाल बरड गोत्रीय स्यालकोट पंजाब निवासी ने गुजरांवाला में दीक्षा ली। वि० सं० १९१२ में अहमदाबाद में आपके साथ संवेगी दीक्षा ली। नाम श्रीमुक्तिविजयजी हुआ। वि०सं० १९०८ में कृपाराम बीसा ओसवाल गद्दिया गोत्रीय रामनगर निवासी ने दिल्ली में दीक्षा ली । नाम ऋषि वृद्धिचन्द रखा । वि० सं० १९१२ में आपके साथ अहमदाबाद में संवेगी दीक्षा ली । नाम श्रीवृद्धिविजयजी हुआ। १०. वि० सं० १९१३ में सूरत के सेठ नगीनदास के पुत्र ने संवेगी दीक्षा ली । नाम नित्यविजयजी । आप नीति स्वामी के नाम से प्रसिद्ध हुए। ११. वि० सं० १९१३ में एक श्रावक ने संवेगी दीक्षा ली। नाम पुण्यविजयजी रखा । Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [211]]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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