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________________ १९४ सद्धर्मसंरक्षक [११] श्रीनिहालचन्दजी श्रीहर्षविजयजी श्रीलक्ष्मीविजयजी [१२] श्रीनिधानमलजी श्रीहीरविजयजी श्रीकुमुदविजयजी [१३] श्रीरामलालजी श्रीकमलविजयजी श्रीलक्ष्मीविजयजी [१४] श्रीधर्मचन्दजी श्रीअमृतविजयजी श्रीरतनविजयजी [१५] श्रीप्रभुदयालजी श्रीचन्द्रविजयजी श्रीरंगविजयजी [१६] श्रीरामजीलालजी श्रीरामविजयजी श्रीमोहनविजयजी इस प्रकार बडीदीक्षा महोत्सव सोलह मुनियों का हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ । वि० सं० १९३२ (ई० स० १८७५) चतुर्मास गुरुवर्य बुद्धिविजयजी के साथ गणिश्री मूलचन्दजी, मुनिश्री वृद्धिचन्दजी, मुनिश्री आनन्दविजयजी (आत्मारामजी) तथा अन्य गुरुभाइयों ने अपने-अपने शिष्य-परिवार के साथ अहमदाबाद में ही किया । आपका श्रीआनन्दविजयजी नाम हो जाने पर भी आप अपने पुराने 'आत्मारामजी' के नाम से प्रसिद्धि पाये।। आप सब मुनिराजों ने शुद्ध चारित्र-धारण और पालक की पहचान के लिये पीली चादर को भी धारण किया। चतुर्मास में प्रतिदिन मुनिश्री आनन्दविजय (आत्मारामजी) का आवश्यक-सूत्र पर आचार्य श्रीहरिभद्रसूरि कृत व्याख्या-सहित व्याख्यान होने लगा । आपश्री की आकर्षक व्याख्यान शैली से प्रभावित होकर इतनी जनता आने लगी कि विशाल व्याख्यान होल में तिल धरने की जगह भी खाली नहीं रहती थी। परन्तु शांतिसागर के व्याख्यान में इने-गिने व्यक्तियों के सिवाय कोई न जाता था । इससे शांतिसागर के मन में ईर्षा की अग्नि ने भयंकर रूप धारण कर लिया । आपकी संवेगी दीक्षा से पहले भी यह शांतिसागर Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [194]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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