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________________ १६४ सद्धर्मसंरक्षक आप तो स्वयं डूबते ही हैं, पर दूसरे जीवों को भी संसार में डूबाते हैं। प्रत्यक्ष छह-काया का आरंभ करते हैं, कराते हैं, और अनुमोदना भी करते हैं । साधु के पांच महाव्रत उचरते (ग्रहण करते) हैं, पर डोली चढते हैं, पालकी, गाडी, घोडे तथा रेलादि में भी चढते हैं। कोई चढते हैं, यदि कोई नहीं भी चढते; पर आपस में गुरु-शिष्य का सम्बन्ध तो रखते ही हैं । सवारी करनेवाले गुरु को वन्दनानमस्कार तो करते ही हैं। कोई धन स्वयं रखते हैं। कोई ज्ञान का नाम लेकर गृहस्थ के पास रखते हैं। कोई दीक्षा ग्रहण करते समय गृहस्थों को ऐसा कहते हैं कि जब हम योगवहन करेंगे तब हमें धन की आवश्यकता पडेगी तब आपसे मंगवा लेंगे। गृहस्थ को कहते हैं कि विहार में मेरे साथ जो पुरुष चलेगा उसको मैं तुमसे रुपये दिलाऊंगा, अभी यह रुपये तुम अपने पास रखो । कोई संवेगी साधु नाम धराते हैं, सर्वत्यागी शीलवंत कहलाते हैं पर तीर्थयात्रा करने जाऊंगा तब रास्ते में खर्चे के लिये रुपये तुमसे मंगवा लूंगा, ऐसा कहकर धनसंग्रह करते हैं। जहाँ धर्मशाला आदि में ठहरते हैं, वहाँ साधु-साध्वीयाँ, श्रावक-श्राविकाएं एक साथ रहते हैं। एक दिन, दो दिन, मासकल्प तक एक जगह रहते हैं। दीपक जलाकर रात को कथा करते हैं और सुनते हैं। साधु नाम धराकर सब दिशाओं विदिशाओं में तेउकायादि स्थावर तथा १. जो साधु-साध्वी रात्री के समय दीपक-बिजली के प्रकाश में व्याख्यानभाषण आदि करने लगे हैं उनके व्याख्यान में नर-नारियाँ सब आते हैं। रात्री के समय साधु के पास स्त्रियों तथा साध्वीयों के आने-जाने का सर्वथा निषेध है। आगम Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [164]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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