SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५१ प्रत्याघात और मुँहपत्ती-चर्चा रतनविजय ने कहा - "ठीक है। हम प्रश्न का उत्तर आपको लिख भेजेंगे।" रतनविजय आदि सब साधु अपने निवासस्थानों पर चले गये । नगरसेठ प्रेमाभाई गणिश्री मूलचन्दजी के पास गये और उनसे कहा कि "रतनविजय आदि साधु ऐसी सलाह कर गये हैं, इसलिये यदि आपकी इच्छा हो तो चर्चा के प्रश्न लिख दीजिये । मैं उनके पास पहुंचा दूंगा।" गणिजी ने कहा - "अच्छी बात है । मैं प्रश्न लिखकर आपके पास भेज दूंगा।" गणि मूलचन्दजी ने लिखा - "आप लोग व्याख्यान करते समय मखपत्ती के दोनों कोने कानों में डालकर मुख पर बाँधते हो, वह अपनी खुशी से बाँधते हो अथवा किसी सूत्रपाठ के आधार से? या परम्परा से किसी सामाचारी में लिखा है ? और किसी आचार्य महाराज ने बाँधने की आज्ञा दी है ? मुख पर मुंहपत्ती बाँध कर कथा करते हो सो किस आधार से? इस प्रश्न का उत्तर लिख भेजना।" यह प्रश्न लिखकर गणिजी ने नगरसेठ प्रेमाभाई के पास भेज दिया और नगरसेठ ने मुनि रतनविजयजी के पास भेज दिया । उन्होंने उत्तर दिया "मुँहपत्ती शास्त्रों में बाँधनी लिखी है, परम्परा से भी बांधनी कही है, बुजुर्ग बाँधते आये हैं, इसलिये हम भी बाँध कर व्याख्यान करते हैं।" रतनविजय ने ऐसा लिखकर नगरसेठ प्रेमाभाई के पास भेज दिया । सेठ ने गणिजी के पास भेज दिया । उत्तर में गणिजी ने लिखा - "यह तो तुमने समुचे गोलमोल उत्तर लिख भेजा है। इसमें किसी भी सूत्र-पाठादि का उल्लेख नहीं है । अतः हमारे प्रश्न का Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [151]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy