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________________ १३० सद्धर्मसंरक्षक ही गमगीन हो रहे थे। न भूख-प्यास थी और न ही आँखों में नींद थी। रात्री को गुरुदेव पूज्य बूटेरायजी को स्वप्न में श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ प्रभु की इसी प्रतिमा के दर्शन हुए । प्रभुजी ने अपने श्रीमुख से फरमाया कि “जब तुम लोगों ने पहले यह निर्णय किया था कि गादीनशीन श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथजी को किया जावेगा, तो उसी निर्णय पर तुम लोगों को कायम रहना चाहिए था । इसमें फेरफार नहीं हो सकता । गादीनशीन चिन्तामणि पार्श्वनाथ ही होंगे।" प्रातःकाल होते ही गुरुदेव प्रतिक्रमण आदि करके निवृत्त हुए और सब भाइयों को बुला कर कहा कि "मुझे रात को श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथजी की प्रतिमा के दर्शन हुए हैं और उन्होंने कहा है कि मूलनायकजी की गादी पर आपको ही विराजमान किया जावे । आप लोगों को अपने पहले निर्णय पर कायम रहना चाहिए। आज प्रतिष्ठा का दिन है, इसलिए श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथजी को ही गादीनशीन किया जावेगा । प्रतिष्ठा ठीक मुहूर्त पर की जावेगी।" सकल श्रीसंघ एकत्रित हो गया और वि० सं० १९२४ वैशाख वदि ७ के दिन बडी धूमधाम के साथ श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रभु को मूलनायक के रूप में गादीनशीन करके प्रतिष्ठा हो गई। गुजरात की एक वृद्ध श्राविका के पास श्रीपार्श्वनाथ की पन्ने की प्रतिमा थी। वह बुढिया अकेली ही थी। पूज्य गुरुदेवने यह १. यह चमत्कार प्रतिमा द्वारा श्रीपार्श्वनाथ प्रभु के शासनदेव श्रीधरणेन्द्र ने किया। सकल श्रीसंघ की प्रार्थना करने पर उसी देव ने स्वप्न में गुरुदेव को कहा। २. पूज्य गुरुदेवने इस घटना से कहा कि "यह प्रतिमा चमत्कारी होने से यह अतिशय तीर्थ माना जावेगा। परन्तु श्रावक लोगों की यहाँ बस्ती नहीं रहेगी । वे व्यापार धंधे के लिये अन्यत्र चले जावेंगे।" बाद में ऐसा ही हुआ । Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [130]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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