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________________ पंजाब में पुनः आगमन और कार्य १२७ अमरसिंह अपने आप आता तो और बात थी। वह स्वयं नहीं आया और मैं उसे बुलाऊं यह अनुचित प्रतीत होता है। उसका स्थानक एक गली छोडकर दूसरी गली में तो है ही, बहुत नजदीक है।" यह सोचकर आपने आये हुए भाइयों से कहा - "आप लोग जाइए, मैं स्वयं वहां आकर खिम्मत-खामना कर लूंगा, मुझें वहा आने में क्या देर लगेगी।" आपने वहाँ जाकर अमरसिंह से खिम्मत-खामना कर ली। अमरसिंह ने भी आप से खिम्मत-खामना कर ली। द्रव्य (ऊपर) से तो खिम्मत-खामना हो गई । भाव से तो जैसे जिसके परिणाम हो वैसी खिम्मत-खामना । भाव तो ज्ञानी जाने अथवा करनेवाला । आप तो खिम्मत-खामना करके अपने ठिकाने पर आ गये। इतने में उन लोगों की तरफ से यह बात सर्वत्र फैला दी गई कि "पूज्य अमरसिंहजी के पास आकर बूटेराय ने क्षमा मांग ली है और वह कह गया है कि 'मैं चर्चा नहीं करूंगा।' देखो भाइयों ! आज हमारे पूज्यजी के साथ चर्चा करने को कोई भी समर्थ नहीं है।" जब यह बात अपने भाइयों तथा आपके पास पहुंची तो सब को बडा विस्मय हुआ कि यह बात क्या हो गई है? जो सच्चे थे वे झूठे हो गए और जो झूठे थे वे सच्चे हो गये । तब आपके श्रावकों ने यह निर्णय किया कि जब पूज्य बूटेरायजी अमरसिंह के वहाँ जाकर खिम्मत-खामना कर आए हैं तो अमरसिंह का भी नैतिक फर्ज हो जाता है कि वह पूज्य बूटेरायजी के पास आकर खिम्मत-खामना करे । परन्तु यह आया नहीं, इसलिये उसको कहला भेजना चाहिये। दूसरे दिन अमरसिंह ने अपने सब साधुओं के साथ विहार करने की तैयारी कर ली। अपने भाइयों की तरफ से लाला उत्तमचन्दजी, जंडियाला गुरुवाले भाई तथा जयपुरवाले भाई मोतीचन्द ये चार Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [127]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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