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________________ १२२ सद्धर्मसंरक्षक एक आदमी को लाहौर भेजा । समाचार मिलते ही आपने अमृतसर के लिए विहार कर दिया । अब देवीसहायजी ने अमृतसर के स्थानकमार्गी भाइयों से कहा कि पूज्य बूटेरायजी ने लाहौर से अमृतसर आने के लिए विहार कर दिया है। वह दो-चार दिनों में ही अमृतसर पहुंच रहे हैं। यह सुनते ही अमरसिंह ने यहाँ से विहार की तैयारी कर ली। दूसरे दिन प्रातःकाल ही उसने लाहौर की तरफ विहार कर दिया । तब देवीसहायजी ने यहां के साधुमार्गी श्रावकों से कहा कि "गुरुमहाराज बूटेरायजी तो अमृतसर पहुंच रहे हैं, इस लिए अमरसिंहजी को रोको, ताकि चर्चा करके सच-झूठ का निर्णय कराया जा सके।" तब कहने लगे कि "बूटेरायजी बडे है और अमरसिंहजी छोटे है इसलिए यह आपका स्वागत करने जा रहे है।" यह कहकर अमरसिंहजी ने अमृतसर से विहार कर दिया । वह आपको रास्ते में मिले । आपने अमरसिंहजी से कहा कि- "मैं तो तुम्हारे पास आ रहा हूँ और तुम वहा से विहार कर आये हो?" वह बातों ही बातों में टालमटोले करके लाहौर की तरफ विहार कर गया और आप अमृतसर की ओर रवाना हो गए। लाला देवीसहाय ने कहा कि अमरसिंह मैदान छोडकर भाग गया है। देवीसहाय ने चार-पांच भाइयों को अमरसिंहजी को बुलाने के लिए लाहौर भेजा । अमरसिंह ने कहा कि "मैं मासकल्प पूरा करने पर आऊंगा।" अमरसिंहने समझा था कि देवीसहाय और बूटेरायजी कब तक अमृतसर में बैठे रहेंगे? उन भाइयों ने अमृतसर वापिस आकर देवीसहायजी से कहा कि "ऋषि अमरसिंहजी मासकल्प पूरा करके यहाँ आवेंगे।" तब लाला देवीसहायजी समझ गए कि उनके विचार चर्चा करने के नहीं हैं। तब देवीसहायजी स्वयं लाहौर Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [122]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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