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________________ १०२ सद्धर्मसंरक्षक हो । उसी के बतलाये हुए मार्ग का अनुसरण करके मोक्ष मार्ग की तरफ अग्रेसर होना संभव है। ऐसे चारित्रवान तो विरले ही जीव कहे हैं। जिस-जिसने जो मान लिया है उस उसने वैसा वैसा मत स्थापित कर लिया है । जैसी जैसी जिसकी बुद्धि है वैसी - वैसी प्ररूपणा करनेवाले तो बहुत मिल जावेंगे । साधारण लोग तो आगमशास्त्र के जानकार होते नहीं हैं, इसलिए वे सच-झूठ की परख नहीं कर पाते । देश में मैंने प्रायः सब मती देखे हैं, बहुतों को परखा भी है, परन्तु वे अपने अपने कदाग्रह को छोडते नहीं । वीतराग केवली प्रभु के दर्शाये हुए मार्ग की शुद्ध प्ररूपणा करनेवाला तो कोई विरला ही होता है। खोटे निमित्त से हानि संभव है, उसकी संगत से जीव की प्रवृत्ति भी खोटी हो सकती है । इसलिए खोटे निमित्त से सदा बचते ही रहना चाहिये ।" उपाध्याय यशोविजयजी आदि गीतार्थ महापुरुषों के ग्रंथ पढने से आपने यह अनुभव किया कि आत्मार्थी भव्य जीवों को चाहिये कि वे श्रीतीर्थंकर गणधर कृत मूल आगमों के अर्थों के समझने और पठन-पाठन के साथ साथ चौदहपूर्वधर, दस पूर्वधर तथा पूर्वाचार्यों आदि गीतार्थों के द्वारा उन पर की गई नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य, टीका (पंचांगी) को भी पढे । अनुकूल आचरण करनेवाले गच्छ तथा सामाचारी के पालक ही श्रीजिनेश्वर प्रभु की आज्ञाओं के अनुकूल आचरण कर सकते हैं तथा ऐसे ही आचार्य - समुदाय की निश्रा में रहकर सम्यग् प्रकार से मोक्ष मार्ग का पालन संभव हो सकता है । ऐसा निश्चय कर जो गच्छ आगमानुकूल सामाचारी का पालन करनेवाला हो उसी में ही दीक्षा लेनी चाहिए । Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [102]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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