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________________ थी, पार हो गई। बादशाह ने कहा, अब उत्तर तो दो। उसने कहा, थोड़ा आगे चलो। धूप तेज होने लगी। बादशाह ने कहा, उत्तर दे दो। अब तो एकांत जंगल भी आ गया, अब तो कोई सुनने वाला भी नहीं है। वह फकीर बोला, सुनो! उस फकीर ने कहा, अब मेरा लौटने का मन नहीं है, मैं जाता हूं। बादशाह बोला, कहां जाते हैं? तो वह फकीर बोला, अब मैं जाता हूं। तुम भी मेरे साथ चलते हो? बादशाह बोला, कैसी आप बात करते हैं। मेरा महल पीछे है। मुझे वहां लौटना है। और वह फकीर बोला, मेरा कोई महल पीछे नहीं है, मेरा कोई लौटना नहीं है। हम वहां महल में थे. महल हममें नहीं था। फर्क अगर दिखे तो दिख सकता है। महावीर ने महल छोड़ा, यह मूल्यवान नहीं है। महावीर के भीतर से महल छूट गया, यह सवाल है। महावीर ने धन छोड़ा, यह मूल्यवान नहीं है। महावीर के भीतर से धन छूट गया, यह मूल्यवान है। महावीर जो छोड़ कर गए, वह मूल्यवान नहीं है। जो उनके भीतर से विसर्जित हो गया, वह मूल्यवान है। संसार बाहर नहीं है। संसार बिलकुल बाहर नहीं है। संसार बड़ी मानसिक घटना है, बड़ी मेंटल चीज है। ये जो दीवालें और मकान और रास्ते दिखाई पड़ रहे हैं, ये संसार नहीं हैं, क्योंकि महावीर मुक्त होकर भी इन्हीं दीवालों और सड़कों पर से निकलेंगे। ये संसार नहीं हैं, क्योंकि जब महावीर ज्ञान को उपलब्ध हो जाएंगे, तब भी रास्तों पर से निकलेंगे, तब भी संसार में होंगे, लेकिन आप उनको फिर सांसारिक नहीं कहते हैं! संसार में होंगे, लेकिन सांसारिक क्यों नहीं कहते? ये संसार नहीं हैं। संसार कुछ और है। संसार मानसिक है, संसार भौतिक नहीं है। वह जो हमारे भीतर एक संसार बन गया है, वह जो मैंने अपनी चेतना के इर्द-गिर्द एक दुनिया चित्रों की और विचारों की आबाद कर ली है। वह जो इमेजेज और कल्पनाएं और स्वप्न वहां इकट्ठे हो गए हैं, वह मेरा संसार है। संसार मेरे स्वप्नों का है, वस्तुओं का नहीं है। इसलिए जो वस्तुओं को छोड़ने में लगा है, नासमझ है। जो स्वप्नों को छोड़ने में लगा है, समझदार है। वस्तुएं नहीं बांधती हैं, वस्तुओं के प्रति देखे गए स्वप्न बांधते हैं। वस्तुएं नहीं बांधती हैं, वस्तुओं के प्रति की गई कामनाएं बांधती हैं। वस्तुएं नहीं बांधती हैं, वस्तुओं के प्रति जगाई गई आसक्ति बांधती है। वह सब मानसिक है। ___ क्रांति संसार को छोड़ने की नहीं, क्रांति मन को परिवर्तित करने की है। __ अन्यथा घर-द्वार छोड़ कर भाग जाएं, पाएंगे कि घर-द्वार पीछे चले आ रहे हैं। स्त्री को छोड़ कर पुरुष भाग जाए, पुरुष को छोड़ कर स्त्री भाग जाए, तो लौट कर पाएंगे कि जिनको छोड़ कर आए हैं, वे साथ ही चले आए हैं। वे पीछे छूटे नहीं हैं। वे जरूर छूट गए होंगे-जो भौतिक पुरुष था, वह छूट गया होगा। लेकिन वह जो कल्पना का पुरुष और स्त्री है, साथ चली आई है। पीड़ा, वह जो शरीर है स्त्री या पुरुष का, वह थोड़े ही दे रहा है। पीड़ा तो वह जो कल्पना, वह स्वप्न जो है भीतर, वह दे रहा है। बांध तो उसका है, बंधन तो उसका है, पकड़ तो उसकी है। वह जो भीतर विराजमान है, पकड़ उसकी है। उसे विसर्जित करना संसार को विसर्जित करना है। उससे मुक्त हो जाना संन्यस्त हो जाना है। मैं एक स्मरण करता हूं, एक कथा कोरिया में घटी। वह चित्र महावीर को समझाएगा। 45
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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