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________________ मैं बुद्ध और महावीर दोनों को पूर्ण अहिंसक मानता हूं। बुद्ध की अहिंसा में रत्ती भर कमी नहीं है। लेकिन बुद्ध ने जो निर्देश दिया है, उसमें चूक हो गई है। वह चूक समाज के साथ हो गई है। अगर समझदारों की दुनिया हो तो चूक होने का कोई कारण नहीं है। एक मित्र यह पूछते हैं कि विवेक के लिए विवेक के प्रति जागना क्या अपनी अविवेक बुद्धि के साथ प्रतिहिंसा न होगी? फिर आप मेरे विवेक का मतलब नहीं समझे। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि विवेक से अविवेक को काटें। अगर काटें तो हिंसा होगी। मैं तो यह कह रहा हूं कि आप सिर्फ विवेक में जागें। कुछ है जो कट जाएगा, कट जाएगा इस अर्थ में कि वह था ही नहीं, आप सोए हुए थे इसलिए था, अन्यथा वह गया। कटेगा भी कुछ नहीं, अंधेरा कटेगा थोड़े ही दीये के जलाने से। इसलिए अंधेरे के साथ कभी भी हिंसा नहीं हुई है। वह नहीं रहेगा बस। विवेक जगेगा और अविवेक चला जाएगा। इसमें मैं हिंसा नहीं देख पाता हूं जरा भी। आप यह कहते हैं कि यह तो ठीक दिखाई पड़ता है कि दीये को जलाया और अंधेरा चला गया। इसको हम सच मान सकते हैं, क्योंकि यह हमारा अनुभव है। दूसरे को कैसे सच मानें? ___मैं कहता ही नहीं कि मानें। अनुभव हो जाएगा तो मान लेंगे। इसको मैं कहता भी नहीं कि मानें। मैं कहता हूं कि आप प्रयोग करके देखें। यदि संशय सच में ही जगा है तो प्रयोग करवा कर ही रहेगा। तभी संशय सच्चा है। तो प्रयोग करके देख लें। विवेक जग जाए और अगर अहिंसा रह जाए तो समझना कि मैं जो कहता था, सत्य नहीं कहता था। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है और न हो सकता है। 192
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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