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________________ पहन ली है? उन्होंने कहा, नग्नता का अभ्यास कर रहा हूं। धीरे-धीरे एक-एक वस्त्र छोड़ता गया हूं। अब अपने कमरे में नग्न रहता हूं। फिर धीरे-धीरे मित्रों में, प्रियजनों में, फिर गांव में, फिर राजधानी में नग्न रहने का इरादा है। धीरे-धीरे नग्नता का अभ्यास कर रहा हूं, क्योंकि नग्न हुए बिना मोक्ष नहीं है । यह व्यक्ति भी नग्न खड़े हो जाएंगे। महावीर की नग्नता से इनकी नग्नता का क्या संबंध होगा? मैंने उनसे कहा कि संन्यासी होने के बजाय सर्कस में भर्ती हो जाओ तो अच्छा है। ऐसे भी संन्यासियों में अधिकतम सर्कस में भर्ती होने की योग्यता रखते हैं। अभ्यास से साधी हुई नग्नता का क्या मूल्य है ? भीतर निर्दोषता का कोई अनुभव हो, कोई फूल खिले सरलता का और बाहर वस्त्र गिर जाएं और पता न चले तो यह समझ में आ सकता है। लेकिन हमें तो दिखाई पड़ता है आचरण, अनुभव तो दिखाई नहीं पड़ता। महावीर को हमने देखा तो दिखाई पड़ा आचरण । अनुभव तो दिखाई नहीं पड़ सकता, लेकिन महावीर का आचरण सबको दिखाई पड़ सकता है। फिर हम उस आचरण को पकड़ कर नियम बनाते हैं, संयम का शास्त्र बनाते हैं, अहिंसा की व्यवस्था बनाते हैं और फिर उसे साधना शुरू कर देते हैं । फिर क्या खाना, क्या पीना, कब उठना, कब सोना, क्या करना, क्या नहीं करना-उस सबको व्यवस्थित कर लेते हैं, उसका एक अनुशासन थोप लेते हैं। अनुशासन पूरा हो जाएगा और अहिंसा की कोई खबर न मिलेगी। अनुशासन से अहिंसा का क्या संबंध ? सच तो यह है कि ऊपर से थोपा गया अनुशासन भीतर की आत्मा को उघाड़ता कम है, ढांकता ज्यादा है। जितना बुद्धिहीन आदमी हो उतना अनुशासन को सरलता से थोप सकता है। जितना बुद्धिमान आदमी हो उतना मुश्किल होगा, उतना वह उस स्रोत की खोज में होगा जहां से आचरण आया है छाया की भांति । इसलिए पहली बात मैंने कही : अहिंसा अनुभव है। दूसरी बात आपसे कहता हूं कि अहिंसा आचरण नहीं है। आचरण अहिंसा बनता है, लेकिन अहिंसा स्वयं आचरण नहीं है। इस घर में हम दीये को जलाएं तो खिड़कियों के बाहर भी रोशनी दिखाई पड़ती है। लेकिन दीया खिड़की के बाहर दिखाई पड़ती रोशनी का ही नाम नहीं है। दीया जलेगा तो खिड़की से रोशनी भी दिखाई पड़ेगी। वह उसके पीछे आने वाली घटना है जो अपने आप घट जाती है। एक आदमी गेहूं बोता है तो गेहूं के साथ भूसा अपने आप पैदा हो जाता है, उसे पैदा नहीं करना पड़ता। लेकिन किसी को भूसा पैदा करने का खयाल हो और वह भूसा बोने लगे तो फिर कठिनाई शुरू हो जाएगी। बोया गया भूसा भी सड़ जाएगा, नष्ट हो जाएगा। उससे भूसा तो पैदा होने वाला ही नहीं। गेहूं बोया जाता है, भूसा पीछे से अपने आप साथ-साथ आता है। अहिंसा वह अनुभव है, वह आचरण है जो पीछे से अपने आप आता है, लाना नहीं पड़ता। जिस आचरण को लाना पड़े वह आचरण सच्चा नहीं है । जो आचरण आए, उतरे, 1 हो, फैले, पता भी न चले, सहज, वही आचरण सत्य है। प्रकट तो दूसरी बात यह है कि आचरण को साध कर हम अहिंसा को उपलब्ध न हो सकेंगे। अहिंसा आए तो आचरण भी आ सकता है। फिर अहिंसा कैसे आए? हमें सीधा - सरल यही दिखाई देता है कि जीवन को एक व्यवस्था देने से अहिंसा पैदा हो जाएगी। लेकिन असल में 175
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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