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________________ प्रिय आत्मन्! भगवान महावीर की पुण्य-स्मृति में थोड़े से शब्द आपसे कहूंगा तो मुझे आनंद होगा। सोचता था, क्या आपसे इस संबंध में कहूं! महावीर के संबंध में इतना कहा जाता है, इतना आप जानते होंगे, इतना लिखा गया है, इतना पढ़ा जाता है। लेकिन फिर भी कुछ दुर्भाग्य की बात है, जो ऐसे व्यक्ति पैदा होते हैं जिन्हें हमें जानना चाहिए, उन्हें हम करीब-करीब जानने से वंचित रह जाते हैं। उनसे हम परिचित नहीं हो पाते। और उनके अंतस्तल को भी हम नहीं देख पाते। पूजा करना एक बात है। आदर देना एक बात है। श्रद्धा से स्मरण करना एक बात है। लेकिन ज्ञान से, समझ से, विवेक से जान लेना, पहचान लेना बड़ी दूसरी बात है। महावीर की पूजा का कोई मूल्य नहीं है। मूल्य है महावीर को समझने का। लेकिन दुनिया पूजा करती है और समझने की कोई चिंता नहीं करती। यह हमारी तरकीब है अपने आप को धोखा देने की। समझने से बचना चाहते हैं, इसलिए पूजा करके निपट जाते हैं। आदर देकर बच जाते हैं, नहीं तो अपने को बदलने की तैयारी करनी पड़ेगी। जो अपने को नहीं बदलना चाहता वह पैर छूकर झंझट छुड़ा लेता है। और दुनिया में सारे लोगों ने इस तरह की मानसिक तरकीबें, आत्म-वंचनाएं विकसित कर ली हैं जिनके द्वारा हम पूजा भी करते जाते हैं, याद भी करते जाते हैं, और ठीक उन्हीं के विपरीत जीवन भी जीते चले जाते हैं। यह इतनी आश्चर्यजनक घटना है। इससे बड़ा और कोई चमत्कार इस दुनिया में नहीं हो सकता। स्मरण करते हैं महावीर का, जीते हैं ऐसा जीवन जो महावीर के बिलकुल विपरीत होगा। और ऐसा भी नहीं है कि यह बहुत सचेतन रूप से जान कर हो रहा हो। अनजाने हम समझने से वंचित रह जाते हैं। तो मैंने ठीक समझा कि इस संबंध में कुछ आपसे बात करूं, कि महावीर के हृदय को समझना आपको आसान हो जाए। उनके हृदय की थोड़ी सी भी झांकी आपको मिल सके। उनके जीवन से कोई वास्ता नहीं है। वे कहां पैदा हुए, किसके घर में पैदा हुए, ये सब सांयोगिक बातें हैं। कहीं भी पैदा हो सकते हैं। किसी के भी घर में पैदा हो सकते हैं। कोई भी दिन पैदा हो सकते 152
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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