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________________ लोगों ने कहा, पागल हो गए हो? बिल्ली के दाम पांच लाख रुपये! और बिल्ली खरीदनी किसको है! हम बिल्ली खरीदने नहीं आए। पर उसने कहा कि नहीं, मुझे तो बिल्ली और मकान साथ बेचना है। मकान का दाम एक रुपया और बिल्ली के दाम पांच लाख रुपये, जिसको लेना हो! इकट्ठे ही बेचूंगा एक ही ग्राहक को। ____ लोगों को समझ में नहीं आया। लेकिन उन्होंने कहा इससे क्या प्रयोजन है! पांच लाख का मकान था, ज्यादा का मकान था। एक आदमी ने पांच लाख की बिल्ली खरीद ली, एक रुपये में मकान खरीद लिया। पांच लाख रुपये उसने तिजोरी में बंद कर दिए, एक रुपया गरीबों में बांट दिया। व्याख्या कर ली अपने मतलब की, अपने काम की, अपने प्रयोजन की, निश्चित हो गया। नींद उसे गहरी आने लगी। स्वास्थ्य उसका ठीक हो गया। महापुरुषों की, उनके जीवन की भी पीछे से हम ऐसी होशियार चालाक व्याख्या करते हैं कि उनका जीवन अपने हिसाब से निर्मित कर लेते हैं। अपना जीवन नहीं निर्मित करते, उनके जीवन को अपने हिसाब से ढाल लेते हैं। इसीलिए मुर्दा तीर्थंकर, मरे हुए अवतार, जा चुके महापुरुष अंगीकृत हो जाते हैं, पूज्य हो जाते हैं, आदृत हो जाते हैं। अभी फिर से आ जाएं वे आपके सामने, फिर विरोध शुरू हो जाएगा। इसी वक्त इनकार शुरू हो जाएगा। जीसस क्राइस्ट को ऐसा एक बार खयाल आ गया, मैंने सुना। अठारह सौ वर्ष बीत गए हैं। उन्हें खयाल आ गया कि अब तो जमीन पर कोई एक तिहाई लोग ईसाई हो गए हैं। मेरे चर्च में पूजा करते हैं। मेरे गीत गाते हैं। मेरी तरफ हाथ जोड़ते हैं। मैंने गलती की जो मैं पहले पहुंच गया जमीन पर, अठारह सौ वर्ष पहले। अब अगर जाऊं तो मेरा ठीक स्वागत हो सकता है। जमीन तैयार है, लोग मेरे स्वागत को आतुर हैं, रोज करोड़ों प्रार्थनाएं आती हैं। तो जीसस जेरुसलम में, अठारह सौ वर्ष बाद सूली पर लटकाए जाने के, जेरुसलम के बाजार में एक दिन सुबह-सुबह रविवार के दिन उतर आए। क्योंकि रविवार के दिन ईसाइयों को पहचानना आसान होता है। बाकी दिन कोई पता नहीं चलता कि कौन ईसाई है, कौन ईसाई नहीं है। जैसे महावीर जयंती आ जाए तो जैनियों को पहचानना आसान होता है। वैसे पता नहीं चलता कि कौन जैनी है, कौन जैनी नहीं है। तो सोचा रविवार ठीक दिन होगा, क्योंकि रविवार को ईसाई मंदिर जाता है. चर्च जाता है। चर्च के सामने ही बाजार में वह उतर कर एक झाड के नीचे खडे हो गए। चर्च से ईसाई लौटते थे, धार्मिक लोग। छह दिन जो पाप करते हैं, वे एक दिन धर्म भी कर लेना भूलते नहीं हैं। सोचते हैं कि एक दिन का धर्म छह दिन के पाप को अगर मिटा देता हो तो हर्जा क्या है! फिर छह दिन पाप करने की सुविधा मिल जाती है। ऐसे निपटारा भी होता चला जाता है, झंझट भी पैदा नहीं होती। जीसस उतरे हैं, मंदिर से निकलते हुए लोग हैं चर्च से, भीड़ इकट्ठी हो गई। लोग हंसने लगे और लोगों ने कहा कि कोई बहुरुपिया मालूम होता है, बिलकुल जीसस क्राइस्ट की शक्ल बनाए हुए खड़ा है! जीसस ने कहा कि नहीं, मैं कोई बहुरुपिया नहीं हूं! मैं खुद हूं जीसस क्राइस्ट। मुझे भूल गए? मेरी प्रार्थना करते हो। मेरे चर्च से आ रहे हो। वे लोग हंसने लगे। उन्होंने कहा, नासमझ जल्दी भाग जा यहां से। अभी पादरी भी आने को है बाहर। अगर उसने देख लिया तो खैरियत नहीं। भागो यहां से, यहां मत रुको। 134
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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