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________________ गई आदत है। नग्न होने का अपना आनंद है और मजा है। छोटे बच्चे इनकार करते हैं कि कपड़े मत पहनाओ, भागते हैं, लेकिन मां-बाप बड़े प्रेमवश उनको कपड़े पहनाते हैं कि जल्दी पहनो कपड़े! दुनिया अगर अच्छी आएगी तो नग्नता सहज स्वीकृत हो जाएगी। लोगों को जरूरत होगी तो कभी कपड़े पहन लेंगे। कोई बहुत सर्दी है, तो कपड़े डाल लेगा। वर्षा पड़ रही है, तो कपड़े पहन लेगा। ऐसे नग्न रहेगा। नग्न रहने के लिए आदमी पैदा हुआ है। नग्नता के लिए उसका शरीर बना है। महावीर किसी आनंद के अनुभव में नग्न हो गए हैं। भक्तगण कह रहे हैं कि महान त्याग किया, बड़ा दुख झेल रहे हैं! पागल हैं हम। महावीर नग्न होकर दुख नहीं झेल रहे हैं। कोई ज्ञानी कभी दुख झेलता नहीं, दुख झेलना अज्ञान का लक्षण है। ज्ञानी निरंतर आनंद से आनंद में प्रतिष्ठित होता चला जाता है। महावीर की चर्या आनंद की चर्या है, दुख की नहीं। लेकिन हजारों साल से यह गणगाथा कही जा रही है कि महावीर दुख झेल रहे हैं। दुख झेल रहे हैं! दुख झेल रहे हैं। क्यों? क्योंकि हम सुख के खोजी हैं, इसलिए हमको दुख दिखाई पड़ता है। हमें पता ही नहीं कि महावीर किस आनंद में प्रतिष्ठित हो रहे हैं! वे कहां जा रहे हैं! उन्हें क्या मिल गया है। महावीर की सारी चर्या सहज है। उसमें कोई त्याग-व्याग नहीं है, उसमें कोई दुख नहीं है, उसमें आनंद ही आनंद है। यह तो उनका अंतस-सूत्र है। बाहर से जो दुख दिखाई पड़ता है, वह भीतर उनका आनंद है। एक पहाड़ पर एक संन्यासी चला जा रहा है। घनी धूप है। तेज सूरज आग बरसाता है। पसीने से लथपथ है संन्यासी। कंधे पर बोझा रखे हए है-अपनी किताबें, अपने कपड़े-लत्ते, अपना बिस्तर। माथे से पसीना पोंछता है। दूर है मार्ग अभी, थक गया है बहुत। और तभी रास्ते पर एक पहाड़ी लड़की भी चढ़ रही है। चौदह-पंद्रह साल की लड़की है। अपने कंधे पर एक मोटे-ताजे बच्चे को लिए है। पसीने से लथपथ है, हांफ रही है। संन्यासी को दया आ गई। हालांकि संन्यासियों को दया जरा मुश्किल से आती है। क्योंकि जो अपने प्रति ही दयापूर्ण नहीं हैं, वे किसके प्रति दयापूर्ण हो सकेंगे? जो खुद को ही दुख देने की कोशिश में लगे हैं, वे किसके दुख से प्रभावित होंगे? लेकिन कुछ जरा गड़बड़ संन्यासी रहा होगा। कभी-कभी गड़बड़ संन्यासी पैदा हो जाते हैं जैसे महावीर। ये बोनाफाइड संन्यासी नहीं हैं। ये ठीक रजिस्टर्ड संन्यासी नहीं हैं महावीर। ये असली संन्यासी, जिसको हम जानते हैं संन्यासी, वैसे नहीं हैं। ये कुछ गड़बड़ हैं, स्टेंजर हैं, अजनबी हैं इस संन्यास की दुनिया में। वैसा ही कोई अजनबी संन्यासी वह भी रहा होगा। उसको दया आ गई। उसने उस लड़की के कंधे पर हाथ रखा और कहा, बेटा! बहुत बोझ मालूम पड़ रहा होगा तुझे? उस लड़की ने नीचे से ऊपर तक संन्यासी को गौर से देखा आश्चर्य से और कहा, क्या कहते हैं आप? स्वामी जी! बोझ आप लिए हुए हैं, यह तो मेरा छोटा भाई है। उस लड़की ने कहा, बोझ आप लिए हुए हैं, यह तो मेरा छोटा भाई है। आप कहते क्या हैं! संन्यासी सोच रहा था, मैं कष्ट उठा रहा हूं बोझ ढोकर, वह लड़की भी कष्ट उठा रही 123
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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