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________________ पूछोगे नहीं। मेरे से विदा हो जाओ। अगर विदा होते हो तो मैं कारण बताए देता हूं। और अगर साथ चलना है तो आगे ध्यान रहे, दुबारा पूछा कि फिर साथ टूट जाएगा। युवा संन्यासी को खयाल आया। उसने क्षमा मांगी। उसे हैरानी हुई कि वह इतना भी संयम नहीं रख सका! इतना भी धैर्य नहीं रख सका! लेकिन दूसरे दिन ही फिर संयम टूटने की बात आ गई। वे एक जंगल से गुजर रहे थे, और उस जंगल में उस देश का सम्राट शिकार खेलने आया था। उसने संन्यासियों को देख कर बहुत आदर दिया, उन्हें अपने घोड़ों पर सवार किया और वे सब राजधानी की तरफ वापस लौटने लगे। वृद्ध संन्यासी के पास राजा ने अपने एकमात्र पुत्र युवा राजकुमार को घोड़े पर बिठा दिया। घोड़े दौड़ने लगे राजधानी की तरफ। राजा के घोड़े आगे निकल गए; दोनों संन्यासियों के घोड़े पीछे रह गए। बूढ़े संन्यासी के साथ राजा का बच्चा भी बैठा हुआ है, वह एकमात्र बेटा है उसका। जब वे दोनों अकेले रह गए: उस बढे संन्यासी ने उस युवा राजकुमार को नीचे उतारा और उसके हाथ को मरोड़ कर तोड़ दिया। और झाड़ी में धक्का देकर अपने संन्यासी साथी से कहा, भागो जल्दी। यह तो बरदाश्त के बाहर था। फिर भूल गई शर्त। उसने कहा, हैरानी की बात है यह! जिस राजा ने हमारा स्वागत किया, घोड़ों पर सवारी दी, महलों में ठहरने का निमंत्रण दिया, जिसने इतना विश्वास किया कि अपने बेटे के घोड़े पर तुम्हें बिठाया, उसके एकमात्र बेटे का हाथ मरोड़ कर तुम जंगल में छोड़ आए हो। यह क्या है? यह मेरी समझ के बाहर है! मैं इसका उत्तर चाहता हूं? बूढ़े ने कहा, तुमने फिर शर्त तोड़ दी। और मैंने कहा था दूसरी बार शर्त तोड़ोगे, तो विदा हो जाएंगे। अब हम विदा हो जाते हैं, और दोनों बातों का उत्तर मैं तुम्हें दिए देता हूं। जाओ लौट कर पता लगाओ तो तुम्हें ज्ञात होगा कि वह नाव वह मल्लाह इसी किनारे पर रात छोड़ गया, और रात उस गांव पर डाका डालने वाले लोग उसी नाव पर सवार होकर डाका डालेंगे। मैं उसमें छेद कर आया हूं। उस गांव में डाका बच जाएगा। और राजा के लड़के को मैंने हाथ मरोड़ कर छोड़ दिया है जंगल में। तुम पता लगाना, यह राजा तो अत्यंत दुष्ट और क्रूर और आततायी है, इसका लड़का उससे भी क्रूर और आततायी होने को है। लेकिन उस राज्य का एक नियम है कि गद्दी पर वही बैठ सकता है, जिसके सब अंग ठीक हों। मैंने उसके हाथ को मरोड़ दिया है, वह अपंग हो गया, अब वह गद्दी पर बैठने का अधिकारी नहीं रहा। सैकड़ों वर्षों से इस देश की प्रजा पीड़ित है, वह पीड़ित परंपरा से मुक्त हो सकेगी। अब तुम विदा हो जाओ। मैं क्षमा चाहता हूं। तुम्हें जो प्रकट दिखाई पड़ता है, वही दिखाई पड़ता है; जो अप्रकट है, जो अदृश्य है, वह दिखाई नहीं पड़ता। और जो आदमी प्रकट पर ही ठहर जाता है, दि ऑबियस, वह जो सामने दिखाई पड़ता है, उसी पर रुक जाता है, वह कभी सत्य की खोज नहीं कर सकता है। मैं तुमसे क्षमा चाहता हूं; हमारे रास्ते अलग जाते हैं। मुझे पता नहीं यह कहानी कहां तक सच है, मुझे यह भी पता नहीं कि उस नाव से डाकू हमला करते या न करते, मुझे यह भी पता नहीं कि वह राजकुमार बड़ा होकर आततायी होता या नहीं होता, लेकिन यह कहानी मैंने किसी दूसरे ही अर्थ से कहनी चाही है। और वह यह है कि 109
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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