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________________ और विचार को धक्के दें तो उलटा विचार और प्रभावी हो जाता है। एक विचार को निकालना चाहें तो वह और चार यजमानों को साथ लेकर वापस लौट आता है। विचार को निकालने का उपाय अगर कभी किए हों-अगर कभी मंदिर में, मस्जिद में, देवालय में बैठ कर प्रभु का स्मरण करने की कोशिश की हो, तो पता होगा, जो विचार सामान्य जीवन में नहीं आते हैं, उस मंदिर के घेरे के भीतर बैठ कर आने शुरू हो जाते हैं। जब-जब चित्त के साथ चेष्टा की हो कि चित्त शून्य हो जाए, शांत हो जाए, मौन हो जाए, तभी पाया होगा कि मौन करने के प्रयास में तो चित्त के भीतर छिपे हुए न मालूम कितने तरह के विचार के धुएं, न मालूम तरह-तरह के विचारों की पर्ते, न मालूम कण-कण से विचारों की लहरें आनी शुरू हो जाती हैं। जो वैसे शांत प्रतीत होता था, वह शांत होने की चेष्टा में और भी उद्विग्न, और भी उत्तेजित हो जाता है, और उद्वेलित हो जाता है। कभी भी थोड़ा सा प्रयोग करेंगे तो पाएंगे प्रत्येक प्रयोग, प्रत्येक प्रयास मन को और भी अशांत कर जाता है। इसलिए साधारणतया वे लोग, जो मंदिर में जाते हैं, जीवन में ज्यादा अशांत होंगे। वे लोग, जो चेष्टा में रत होते हैं चित्त को शांत करने की, जीवन में ज्यादा उद्विग्न होंगे। उन ऋषियों के बाबत सुना होगा जो अभिशाप देते हैं, जो क्रोध में क्या-क्या कह देते हैं। बहुत तरह से लोग अनुभव करते हैं कि चित्त से लड़ने वाले लोग क्रोधी होते हैं। चित्त के साथ दमन करने वाले लोग अत्यंत क्रोध से भरे, अत्यंत ज्वरग्रस्त मालूम होंगे। उनकी शांति के नीचे कहीं ज्वालामुखी छिपा हुआ है। असल में मन के साथ दमन, मन के साथ संघर्ष मन को जीतने का उपाय नहीं है। मन से जो लड़ेगा, वह मन को जीतेगा नहीं। मन को जीतने का राज कुछ दसरा है। इसलिए एक क्षद्र विचार को भी इस संघर्ष से दर नहीं किया जा सकता है। तिब्बत में एक साधु हुआ है। उसके पास एक युवक गया था। तीन-चार वर्ष तक उस युवक ने उस साधु की सेवा की थी। और चाहा था कि कोई सिद्धि मिल जाए। वह साधु टालता रहा, टालता रहा। उसने कहा, मेरे पास तो कोई सिद्धि नहीं। लेकिन युवक माना नहीं, पीछे पड़ा ही रहा। साधु ने आखिर एक दिन उसे कागज पर एक मंत्र लिख कर दिया और कहा, यह ले जा! पांच बार एकांत क्षण में रात्रि को बैठ कर इसे स्मरण कर लेना और तब तू जो चाहेगा चमत्कार और सिद्धि तुझे उपलब्ध हो जाएगी। अब तू भाग जा। वह युवक भागा। उसी के लिए तो वह तीन वर्ष से रुका था! उमंग से सीढ़ियां उतर रहा था। आखिरी सीढ़ी उतरने को था, तो उस साधु ने चिल्ला कर कहा कि सुनो मित्र, एक बात तो बताना भूल गया। शर्त अधूरी रह गई। जब पांच बार इस मंत्र को पढ़ो तो याद रखना, बंदर का स्मरण न आए। उस युवक ने कहा, पागल हुए हो! जिंदगी भर किसी बंदर का स्मरण नहीं आया, पांच बार स्मरण करने में क्यों आएगा! लेकिन वह पूरी सीढ़ियां भी उतर नहीं पाया था और बंदर ने उसे घेर लिया। वह राह पर चला और बंदर का बिंब उसके भीतर उठने लगा। वह हटाने लगा बंदर, तो एक नहीं अनेक झांकने लगे। सारा चित्त जैसे बंदरों की भीड़ से भर गया। वह घर तक पहुंचा तो बंदरों की भीड़ में उसका सारा मनस घिर गया। वह बहुत हैरान हुआ कि साधु जरूर अज्ञानी और नासमझ है। अगर बंदर का स्मरण मंत्र में बाधा देता है, तो उस अज्ञानी, उस नासमझ को कहना ही नहीं था। उसने कह कर तो मुसीबत कर दी। 100
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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