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________________ महायोर परिचप और पाणी ३७ इग सम्ब घ म मूतिया के महत्व का गमय लेना जरूरी है । मूनिया या सवम पहला प्रयोग पूजा के लिए नही अशरीरी आत्मामा म सम्पर स्थापित करा लिा दिया गया था। यदि महावीर की मूर्ति पर माई बहुत दर तक अपना रित एकान पर और फिर बास बर पर रे तो उस मनि का निगेटिव उसकी आस म रह जायगा। ऐसा प्रयोग मव प्रथम उन लोगो न विया जो अगरीरी आमाआ स मम्वघ स्थापित करना चारत थे । यह निगेटिव महावीर की आरीरी आत्मा से सम्बधित होन या माग बन जायगा। एमा यनत काल तप हा मक्ता है। भारीरी आत्माएं भी परणावा सम्बय साजने की कोशिश करता है। धौरे और उनकी परणा भी क्षीण हो जाती है। पात रह वि वरणा उनी नन्तिम वासना है। जव उनपी समा वासनाए क्षीण हो जाती है तब वरुणा ही सिप रह जाती है। लेकिन अत म करणा भी धोण हा जाती है। मलिए पुराने शिक्षण धीर धीरे या जात हैं। उनकी परणा के क्षीण होते ही उसे सम्व च स्यापित करना पटिन हो जाता है। महावीर म सम्बय स्थापित करना आज भी सम्भव है, रकिन उनके पहरे के तस तीथवा माविता में भी सम्बध स्थापित नहीं पिया जा सकता। यही कारण है कि महावीर पतन कीमती हो गए और प तीयगर गर ऐतिहागिरदीपन लगे। जिन परम्पराओं के शिक्षा समाज भी सम्य च स्थापित हो मवना है वे परमगएँ पपूल रही हैं। अब प्रश्न उठना है कि एक ही समय म दासीयपर पया नहा हात? एक ही परम्परा म, एही समय दा तीपार नहा होत । इसपा मारण यह है पि यदि रिमा परम्परा या ताथकर माम कर रहा है तो दूसरा त पार विलीन हो जाता है। उमपी पाई जमरत नहीं होती। (जस एस ही या म एप हो गमय दा नि पो पोद मरत नहीं होता।) परणा पौडे राम कर सकता है और पोछे ती सम्बय स्थापित किए जा गरन है। पीन प हाथ मनियत पर जान सजावा नुषसा हुआ, म भोगि यो म रा नापा जा सरना। प्रतिवप गुरुपूगिमा रे मिलियन पाम गौ विशिष्ट और लामा मामरायर पे बिर र दिप पदा पर युद्ध में पिर पर स्थापित परा। यह बारा वर्षोंगी RT गुप्न पपया था।ग प्यास्या या पाापा गया । गा TET frटार पांच मी मिणगाम मम बुद अपने पूर म प्र प यपि यह भी माना ।म परीर पभी भी ग्पागार - माना है और अगर बाग यामा परें पापित र प्रारना पर ता पाप पर यहा पर है। शरीर अपत गूम मापा या होता है । यिा या मोतिर TimiT मा गरिख नायन म गाrt गोमा पर है िमाITI मरा माहित FITE मा माकागा जोर एमाप्रति नाम पाया | म गरनी है।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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