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________________ महावीर परिचय और वाणी उहाने इनकार कर दिया होगा। उन्हें पढ़ने की जरुरत नहीं। शिक्षक जा पढा सक्त हैं, व उन पहरे म ही जानते हैं । इमरिए कोई शिक्षा न हुई। शिक्षा ग्रहण करन या पोई कारण भी न था वाइ अथ भी न था। ___ महानोर के जन्म के सम्बध म एप अयपूण गाया है। पहा जाता है कि व ब्राह्मणी + गम म आए और देवताना न उहें एव क्षत्रिया व गम में पहुंचा दिया । यद्यपि यह तथ्य नहा वि देवताओ न एक स्त्री का गम निकाला और उसे दूसरी स्त्री म रग दिया, फिर भी बात बड़ी गहरी है। इससे पहली सूचना तो यह मिलता है दि महावीर का पथ पुरुष का, आक्रमण का, धनिय का पथ है । उनका जो व्यक्तित्व है उनको मोज पा जा पय है वह क्षत्रिय का है। इस अथ म क्षमिप या है कि वह जीतनेवाले का है। इसी कारण महावीर जिन कहलाए। पिन या मतलब है जीनन वा । यह पुरप जिगका और कोई पप नही सिवा जीतने के । और इसीलिए उनकी पूरी परमरा जैन हो गई। गाया कहती है कि महावीर ब्राह्मणी २ गम मे निकाल पर एक क्षमाणी र गम म डार दिए गए। इम प्रकार के प्राह्मण होन स बचे । ब्राह्मण या माग न ता परमा मा से एडने का है आरन समपण ग्ने या । वह बना है-परमात्मा सस्नो ' अगोमन है। समपण यरोग ? मिसरे प्रति ? उसका अभी कोई पना नही। हम दीन हीन लोगो के पास ममपण के लिए है क्या? और छीनगे म? एप हो माग है पि हम हाय पनगदें विनम्रता से जऔर उसरी मिना स्वीकार पर। अन ग्राह्मण को वति मिक्षय की है और उसका माग भीप मांगन रा। महावार सा व्यक्ति जीतेगा मांग नहीं सकता। इसलिए यदि ऐश व्यक्ति ब्राह्मणी के गम मजा भी जाय तो दाताओं को उस हटानर पिसो क्षपिया रे गम म रग दा परेगा । महावीर या यक्तित्व ही Tमना क्षत्रिय पा है। व मिती ये मामा हाथ नहा फला गस्त परमात्मा ये मन मी हा व जीतेग, इसी म उनके जीवन वी माधाना है। दिनों दाम जो गवाधिक प्रभावी परम्परा यी यह याह्मणा मा घी, अमहाय वनार मांगन याला की थी। सम सह नहीं मि अगहाय हाना बडीमाभुत प्राति है। वह भी एप माग है रविन वह माग बुरी तरह पिट गया पा। जाबरमत पटना पट गईधी वह पर पी। पद्यपि माता या असहाय होने मा सा मी उगी परम्परा नी गाढ़ी और मजवत हो गई थी कि अगहाय प्राप ही सवरा ज्यादा अमर महर पर परत । गण होन का जो मौलिप धारणा पो 'पालवाह्मणी या अवम्पामिना विद्या ग मुस्गर रिरोगमपान माापीर मा गमहरज रिया पार २२. प. ८८८० डॉ० नगदीशः उन जन आम माहिर म भारतीय गमार (१.६ ),प० ३४६ (पारिपनी)।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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