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________________ महावीर परिचय और वाणी ३२५ मिला हुआ है । वह आज नही क्ल छूटेगा, दुख लाएगा, पीडा होगी। इसलिए महा वीर कहते हैं कि अगर पीडा के बिल्कुल पार हो जाता है तो दूसरे से ही छूट जाना पड़ेगा । दूसरे के साथ जो भी सम्बध है वह टूट सकता है। परमात्मा के साथ भी सम्बध टूट सकता है। महावीर कहते हैं कि जो बन सकता है वह बिगड सकता है, इसरिए बनाने की कोशिश ही मत करो। महावीर कहते हैं कि ईश्वर हो या न हो इससे धम का कोई सम्बध नहीं, क्याकि दूसरे का जब भी मैं ध्यान मे लाता हूँ तो गलत ध्यान हो जाता है। निश्चित हो ईश्वरवादियो को महावीर गहन नास्तिक मालम पडे नास्तिका से भी ज्यादा। इसलिए तथाकथित आस्तिकों ने चार्वाक से भी ज्यादा निदा महावीर की है। __महावीर मूर्छा विरोधी थे। इसलिए उहोने एसी किसी भी पद्धति की सलाह नही दी जिससे मूच्छी आने की जरा भी सम्भावनाही । यह महावीर की और भारत की दूसरी पद्धतिया या भेद है । भारत म ध्यान की दो ही पद्धतियाँ रही हैं । यहना चाहिए कि सार जगत म ध्यान की दा ही पद्धतियाँ रही हैं । एक पद्धति को हम ब्राह्मण-पद्धति कह सकते हैं और दूसरी का श्रवण पद्धति । महावीर की पद्धति श्रवण पद्धति है । जहाँ ब्राह्मण पद्धति विश्राम की पद्धति है वही श्रवण पद्धति-महावीर की पद्धति-श्रम की पद्धति है। चूवि विश्राम और नीद या गहरा अत सम्बध है, इसलिए महावीर ने विश्रामवाली पद्धति का उपयाग नही किया। वे कहते हैं कि श्रमपूर्वक ध्यान में जाना है, विश्रामपूवक नही। विधामवाली ब्राह्मण पद्धति के प्रस्तोता वाहते हैं-हाथ पाव ढीले छाड दो, सुस्त हो जाओ, शिथिल हो जाआ ऐसे हो जाओ जसे मुर्दा हो गए । श्रवण-पद्धति कहती है कि जितना तनाव पैदा कर सकते हो उतना ही अच्छा है । अपने को इतना खीचो इतना खीची जमे विकाई वीणा के तार को खीचता चला जाए और टवार पर छोड दे--अपने को तीव्रतम स्वर तक खीच दो । निश्चित ही एक सीमा आती है जव अत्यधिक तनाव के कारण सितार का तार टूट जाता है । लेकिन चेतना के टूटने का प्रश्न नही उठता वह कभी टूटती ही नहीं। इसलिए-महावीर कहते हैं-नोचते चले जाआ, चेतना का अपनी अति पर पहुंचा दा। तब अनजाने तुम्हारी चेतना विश्राम को उपर घ हो जाएगी। यह विश्राम बहुत अनूठा होगा। ऐसा विधाम कभी नीद मे नही ले जा सकता । वह सीधा विश्राम मेरे जाता है। ठीक ध्यान के लिए कुछ प्रारम्भिक बातें स्मरणीय हैं। उनके विना इस ध्यान म नही उतरा जा सकता। एक तो उपरिलिखित दस तप अनिवाय हैं उनके विना इस प्रयोग को नहीं किया जा सकता। उन दस सूत्रा के प्रयोग से आपक व्यक्तित्व म वह कर्जा और शक्ति आ जाती है जिनसे आप चरम तक अपने का तनाव म ले जाते हैं। इतनी सामथ्य और क्षमता आ जाती है कि आप विक्षिप्त नही हो सकते । अयया
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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