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________________ ३०२ महावीर : परिचय और वाणी मे अनेक लोग भोजन लेकर सड़े होते हैं और तरह-तरह के इन्तजाम करते है । परन्तु महावीर भोजन नहीं लेते। गाँव के लोग दिगम्बर मनियो के लिए आज भी ऐसा ही करते हैं। फिर भी उनके सकरप जाहिर हो जाते है और लोग वैसा ही प्रवध कर लेते हैं। दिगम्बर मुनि पहले ही कह देते है कि वे भोजन वहीं करेंगे जहाँ किनी घर के सामने केले लटके हो। यह बात लोगो को मालूम हो जाती है और सब लोग अपने घर के सामने केले लटका लेते हैं। दिगम्बर मनि सकरत करते हैं कि वे तभी भोजन लेगे जब कोई स्त्री सफेद साडी पहनकर भोजन के लिए बामत्रित करे । उनका सकल्प प्रकट कर दिया जाता है पीर स्नियां सफेद नाटी पहनकर उन्हें आमंत्रित कर लेती है। इसलिए अब जैन मुनि कभी बिना भोजन लिये नही लौटते ।। महावीर की प्रक्रिया कुछ और थी। वे किसी से कुछ कहते नहीं थे। मन-ही-मन सकल्प कर लेते थे कि जब ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होगी और जब नियति को मजूर होगा तभी में भोजन लूंगा। कभी-कभी तीन-तीन महीने उन्हे भोजन लिये बिना ही गाँव से लौट जाना पडता । जव मन के लिए कोई नीमा नहीं होती तो मन को तोडना बहुत आसान हो जाता है। इसक विपरीत, जब मन के लिए सीमा होती हे' तो उसे बचाना बहुत सरल होता है । यदि सीमा है तो लगता है कि एक ही घटे की बात है, निकाल देगे, चौवीस घटे की बात है, गुजार देंगे। लेकिन महावीर का जो अनशन था, उसकी कोई सीमा न थी। वह कब पूरा होगा कि न होगा, या वह जीवन का अन्तिम अनशन होगा-भोजन उसके बाद कभी न होगा-इनका कुछ पक्का पता नहीं होता। स्पष्ट है कि महावीर ने उपवास और अनशन पर जैसे गहरे प्रयोग किए, वैसे गहरे प्रयोग किसी अन्य व्यक्ति ने इस पृथ्वी पर नही किए। मगर आश्चर्य है कि इतने कठिन प्रयोग करने पर भी महावीर को कभी-कभी भोजन मिल ही जाता था। उन्हे वारह वर्षों मे ३६४ वार भोजन मिला । कभी पन्द्रह दिन वाद, कभी दो महीने वाद, कभी तीन महीने बाद । इसलिए महावीर कहते थे कि जो मिलनेवाला है, वह मिल ही जाता है। उसका त्याग भी कैसे किया जा सकता है ? त्याग तो उसी का किया जा सकता है जो नही मिलनेवाला होता है। महावीर कहते थे कि जो नियति से मिला है, उसका कोई भी सम्बन्ध मुझसे नही है, क्योकि मैने किसी से मांगा नहा, मैंने किसी से कुछ कहा नही । छोड दिया अनन्त के ऊपर कि यदि जगत् को मुझ चलाने की कोई जरूरत होगी तो वह मुझे और चला देगा, यदि जरूरत न होगी ता बात खत्म हो जाएगी। मेरी अपनी कोई जरूरत नही है । (२३) ध्यान रहे कि महावीर की सारी प्रत्रिया जीवेषणा छोड़ने की प्रकिया है। महावीर कहते है कि मै जीवित रहने के लिए कोई एषणा नहीं करता। अगर इस अस्तित्व को ही-इस होने को ही-मेरी कोई जरूरत हो तो वह स्वय इसका इन्त
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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