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________________ महावीर परिचय और वाणी २९७ या उपयोग है। इसलिए जो आदमी अनशन का अभ्यास करेगा, वह उसका फायदा नहीं उठा पाएगा। अनशन 'सडेन' प्रयोग है आरस्मिक और अचानक प्रयोग । वह जितना अचानव हागा, अतराल का उतना ही वाघ होगा। अगर आप अभ्यासी हैं ता एक स्थिति से दूसरी स्थिति म जाने म माप इतने कुशल हो जाएंगे पि वीच के अन्तराल का थापको पता ही नहीं चलेगा। इसलिए अभ्यासिया को अनशन से कोई लाभ नहीं होता । हम रोज स्थिति वदरत है लेकिन अभ्यास के कारण अतराल का पता नहा चलता। (६) अनान का प्रयोग सफ्टकालीन यत्र म प्रवेश का प्रयोग है। इस तरह के अनेक प्रयोग हैं जिनसे मध्य ये गप बा, अन्तराल वा वाच होता है। सूफ्यिा न अनशन का उपयोग नहीं दिया है, उहोंने जागने का उपयाग दिया है। प्रयोग अलग है कि तु परिणाम एक ही है । उहांने कहा है, सोना मत जागे रहना। इतना जागे रहना विजय नीद आए तब नीद म मत जाना-जाग ही रहना। अगर जागने की चेप्टा उस समय भी जारी हो रही जब जागने का यत्र विलकुर थक गया, तब थाप एक क्षण के लिए उस दिना म पहुँच जाएंगे जब जागना भी न रहा और नीद भी न रही-तव आप बीच ये अतराल में उतर आएंगे। इसलिए सूफिया न रात्रिजागरण को बडा महत्त्व दिया है। महावीर ने उसी प्रयोग को अनान के द्वारा किया है। तम ये एक अदभुत ग्रन्थ 'विज्ञान मरन' मे गर ने पावती से ऐसे सक्दों प्रयोग कहे हैं। हर प्रयोग दो पक्तिया का है। हर प्रयोग का परिणाम वही है वि वीप का, गप आ जाए। शकर कहते हैं-सांस भीतर जाती है और बाहर आती है। पावती तू दोना बीच म ठहर जाना तो तू स्वय का जान लेगी । वहाँ ठहर जाना जहाँ न प्रेम होता है और न घणा ही। दोना के बीच में ठहर जाने पर तू स्वय का उपर प हो जायगी । अनशन उसी का एक व्यवस्थित प्रयोग है। (७) महावीर ने अनान क्या चुना? इसलिए कि सांसा के बीच ठहरना पठिन है लेकिन भाजन और अनान के बीच ठहरसा अपेक्षाकृत अधिक आसान है। सांस नान-वालटरी है वह आपको इच्छा से ही चलती। लेकिन भोजन करना 'वॉर टरी पृत्य है । मूपिया न नीद चुनी है यह भी यठिन है, क्यापि नीद भी 'नान-बॉरटरी' है आप अपनी कोशिा से उस नही बुला सक्त । जब यह नहीं आती तो सारा उपाय घरो यह नहीं आ सकती। महावीर ने बहुत सरल सा प्रयाग चुगा है जिसे बहुत सांग पर सरें। इसमें एप तो सुविधा यह है कि ९० दिना तक हम मोतन न भी परें तो पोई सतरा नहीं है। अगर ९० दिना तय विना साए रहना पड़े तो हम पागल हो जाएंगे। आज मामा ये अनुयाया ची मो सवस या पीडा रहे हैं वह यह है कि वे अपाविरोधिया या सोने न देंगे। भूरो रसार ज्यादा
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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