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________________ महावीर परिचय और वाणी २७९ कहा कि हम जितनी पक्तिया के सम्बन्ध भ जानते हैं, निश्चित ही उनसे भिन्न काई अयक्ति भी हम मिली होती है । (१३) याग निरतर उस शक्ति वा चचा करता है । महावीर की सयम प्रक्रिया वाय उस अयक्ति को जगाना है । जस-जसे वह अन्य शक्ति जगती है वस वम इंद्रिया फीकी हो जाती है । जो श्रेष्ठनम है, आदमी उसे ही चुनता है। यि आपका इंद्रिया वा यतीत्रिय रूप प्रकट होना शुरू हा जाय ता निश्चित ही आप इन्द्रिया वा रम छोड देंगे और एक नए रस में प्रवेश कर जायेंगे । जो अभी इन्द्रिया म ही जीत हैं और जिनकी समय की सीमा इंद्रिया में पार नहीं है, व आपका महा त्यागी कहेंगे । लकिन आप केवल भाग की और गहनतम दिशा में आगे बढते हैं और उस रस का पान लगत है जा इंद्रिया में जीनवारे आदमी को कभी पता ही नहा चरता । अतीद्रिय सम्भावनाओ को बढान के लिए महावीर न बहुत ही गहन प्रयोग क्ि हैं। अगर व भोजन व बिना वर्षों रह जात हैं ता इसका कारण है । कारण यह है कि उन्होंने एक भोजन भीतर पाना शुरू कर दिया है । अगर वे पत्थर पर लेट जाने है तो इसका कारण यह है कि उहाने भीतर व एक नए स्पश जगत में रहना शु कर दिया है । अन उनके लिए बाहर की चीता का महत्व नहा है । इसलिए भरायार सिकुडे हुए मालूम नहा पडते, फ्ले हुए मालूम पडते हैं । व आनन्दित हैं, तथा कथित तपस्विया - जम दुसी नहीं हैं । (१४) बुद्ध ने भी वही साधना की जो महावीर न की है। लेकिन जहाँ महावीर आनन्दको उपल्ध हुए वही बुद्ध को बहुत पीड़ा हुई । महावीर महापक्ति को उप की हुए बुद्ध व निल हो गए। निरजना नदी को पार करते वक्त एक दिन व तन कमजार थे कि उनम विनारे कोटवर चढन की शक्ति मी न थी । एक कावडकर वे साचने लगे कि जिस उपवास से मैं नदी पार करन नसा चुका उसमे इस भवसागर का वस पार कर सकूंगा ? इसलिए बुद्ध इम निवप पर पहुँच र तपश्चर्या व्यय है । वे बुद्धिमान और ईमानदार थे । यदि व नाममण होत ता इस निष्यप पर नही पहुँचते । अनक नासमझ लाग उन दिशाओ म मी लगेच जाते हैं जा उनव लिए नहीं हैं और जा उन व्यक्तित्व स ताल्मल नहा वाती । ध्यान रहे कि जो आपकी दिशा नहा है, उसम आप पूरा प्रयास भा महा पर सक्ने | इसलिए यह भ्रम बना ही रहगा कि में पूरा प्रयास नहा कर पा रहा हूँ । अमर में वागजिनसे युद्ध प्रभावित हुए थे, निषेधमार्गी थे। जिस गुरु न जा छान या हा, वे छोडत गए । राय छोडवर उन्होंने पाया कि गयता छूट गया मिला कुछ भी नहा में वेपल दीन-हीन और दुग्र हो गया । 7
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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