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________________ महावीर परिचय और वाणी २७१ किए हुए समाजा म हानी है । अगर जैनिया को उपवास और आशन अपीर करता है तो इसका कारण यह है कि उनको ज्यादा माने को मिला हुआ है। गरीव का जा धार्मिक दिन होता है उस दिन वह अच्छे भाजन करता है और अमीर अपने धार्मिक दिन का उपयाम करता है। जहाँ जहाँ माजन बनता है, वहा वहां उपवास का पट' बरता,है। (१५) सच तो यह है कि ज्यादा सानवाला जब उपवास करता है तब उस कुछ उपर घ नही होता, सिवा इसके कि उसको भोजन करने का रस फिर स उप एप होन रगता है जीम म स्वाद लौट आता है। महावीर कहत ह पि उपवास म रस म मुक्ति होनी चाहिए, लेकिन उपवास के वाद साधारण लोगा के लिए भोजन का रम और प्रगाढ हो जाता है। यहाँ तक कि उपवास म भी सिवा रस के आदमी और कुछ भी नहीं सोचता। वह रम पर चितन करता है योजनाएं बनाता है। उसकी मरी हुई भूस फिर सजीव हा उठती है। दम दिन के बाद आदमी टूट पडता है भोजन पर । अति पर जाता है मन । और असयम है एष अति से दूसरी जति पर नाना, दा अतिया बीच डोरत रहना । सयम या अय है म य म हो जाना । अगर हम ममयत हो कि ज्यादा भोजन असयम है तो मैं आपस रहता हूँ कि फम भोजन भी असपम है, दूसरी अति पर हाना है। सम्यक आहार सयम है। ज्यादा सा ऐना या कम सा लेना जासान है सम्यर आहार अति पाठिन है फ्यावि मा गम्यर पर खता ही नहीं। महावीर की गलावली म अगर कोई गल मवस ज्यादा महत्त्वपूण है ता वह मम्य ही है । सम्यय या अय है--मध्य म, अति पर नहीं, वहा जहां सब चीज सम हो जाती है। जहाँ अति का तनाव हा रह जाता, वहाँ सब चीज ममम्वरता या उपर य हो जाती है। इसी समस्वरसा का नाम सयम है 1 निषेध सयम रहा है, पयाकि निषेध म रम दूमरी अति पर हात है। (१६) मन बीच म नहीं रखता क्यापि मन माजय है तनाव, टेंगन । बीच म रहेंगे तो तनाव नहा होगा। जब तर पति पर न हा, तर तर तनाय नहीं होता। इमरि ए मन र ति म दूमरी लति पर टाता रहता है। मन जीता हा है अति म और ममाप्त हो जाता है मयम म । इमरिए जर आप पहत है कि अमुक आमी प पारा यहुत सयमी मन है तब आप चिरकुर गलत महत हैं। सयमी के पास न शेता ही नहीं । अगर हम एसा पहें कि मन ही अरायम है का कोई अनियाक्ति न हागी। जेन चौसा माफकीर हैं । यहत हैं कि सयम तमी उपल ध "ता है व 'नो माइड या उपाधि हाती है--जव मा नहीं रह जाता। परीर न भी 'मन' मी अपरथा को सयम की अवस्था पहा है। एविन हम तनाय म ही जीत हैं। अगर चित्त म तनाव न होता हम लगता है,
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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