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________________ महावीर परिचय और वाणी २६९ क्या महावीर जय राग समग्र म जीत हैं। कुछ नहीं रहा जा सकता कि हो सकता है, जिस पर पार हो रहा है उन छोटे-टपटें । फिर भी वृध नहा पण जा पाता । जरुरी नहा कि यह (९) दिगो बहुत जटिल है । यहाँ जा पिट रहा है यह पिटने में याग्य हा और जा पीट रहा है यह भी जरूरी नहीं यह गलत हा कर रहा हो । महावीर उस व्यक्ति किमीना घटना को उसका पूरी जटिलता म दमन हैं | इसलिए वक्या करेंगे, यह कहना आसान पहा है । * या हैं। (१०) सयम के सम्बाध में कुछ सूत्र याद र महावीर मयम को धम दूसरा महत्वपूर्ण सूत्र पहने हैं। हिमाधम को आत्मा है, सयम सांस है और तप देश | महावीरन शुरू किया जहा स-अहिमा गयमो तथा । तप या आखिर म रामपाबीच म ओर अहिमा यो सरस पत्र । हम तप या पहले देखते हैं, गम को पीछे दाता यही रिगाई पटती है। महावीर भीतर से बाहर तर मत है, हम वाह में मातर की तरफ इसलिए हम तपस्वी थी जितनी परते उतनी गिर की हा तप हम दिखाई पड़ता है वह देह जगा बाहर है। हम हर म है, जहृदय है । सपना हम अनुमान जब हम यो तपस्या है तब हम समय है यह संयमी है नहा तान समरगा परन्तु तपस्वी भी रायमोहागपता है और परम दिलाद पहनेगी भी गमी हा सा है । यद्यपि मयमी में जीवन में तप होता है। फिर भी जीवन सयम या होना ही है। महावार भीतर ग क्या यही रहना उचित है। क्षुद्र से विराट की तरफ मग भू होती हैं। विराट से क्षुद्र मा तरफ जाने में बना भूल नहीं होना । जामखोरमा तारा है राय, दमा, नियण, पाता है अपनी पतिया का बोधना है यह है की यह परि पिया यो निट है। एमिहार व्यक्ति जीवा पड़ा था। नियंत्रण है परिचित जाविशय र जिए गरमा ग या पाना है या जिन रहा है उनका दिला आ " है। उारी निहारा जाता है। (११) माझा वो पहरा है। मनही जीवन भर में है विनय पनीर निषेध महार
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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