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________________ २६२ महावीर : परिचय और वाणी (१६) वे कहते है कि विचार की सम्पदा को भी अपना मानना हिंझा है, क्योकि जब भी आप किसी विचार को अपना कहते है, तभी आप सत्य से च्युत हो जाते है । जव भी मै कहता हूँ कि यह विचार मेरा है इसलिए ठीक है, तभी मैं सत्य से विलग हो जाता हूँ। (१७) जव हम कहते है कि यही है सत्य, तव हम यह नहीं कहते कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य है, असल मे हम कहते है कि जो कह रहा है, वह सत्य है। जब हम सत्य है, तव हमारे विचार सत्य होगे ही। जगत् मे जितने विवाद है वे सत्य के विवाद नही है, 'मैं' के विवाद है । महावीर से अगर कोई विलकुल विपरीत वात भी कहता तो वे कहते--यह भी ठीक हो सकता है। ज्ञात इतिहास के पृष्ठो मे यह आदमी अकेला हे जो अपने विरोधी को भी ठीक कहता है। (१८) महावीर को इस बात का पता है कि ऐसी कोई भी चीज नही हो सकती जिसमे सत्य का कोई अश न हो। नही तो वह होती ही कैसे ?,स्वप्न भी सही है, क्योकि स्वप्न होता तो है । स्वप्न में क्या होता है वह सत्य भले न हो, लेकिन स्वप्न होता है, इतना तो सत्य है ही । असत्य का तो कोई अस्तित्व नही हो सकता। इसलिए महावीर ने किसी का विरोध नही किया। इसका अर्थ नही कि महावीर को सत्य का पता न था। महावीर को सत्य का पता था। लेकिन उनका चित्त इतना अनाग्रहपूर्ण था कि वे अपने सत्य मे विपरीत सत्य को भी समाविष्ट कर लेते थे । वे कहते थे कि सत्य इतनी बटी घटना है कि वह अपने से विपरीत को भी समाविप्ट कर सकता है। सत्य बहुत बड़ा है, सिर्फ असत्य छोटे-छोटे होते है। उनकी सीमा होती है । यही वजह है कि महावीर के विचार बहुत दूर तक, ज्यादा लोगों तक नही पहुँच सके । सभी लोग निश्चित वक्तव्य चाहते है, कोई सोचना नही चाहता। सव लोग उधार चाहते है । महावीर इतनी निश्चितता किसी को नहीं देते। (१९) वे कहते है कि दूसरा भी सही है । आग्रह मत करो, अनाग्रही हो जाओ। इसलिए महावीर ने किसी सिद्धान्त का आग्रह नही किया। उन्होने हर वक्तव्य के सामने स्यात् लगा दिया—'परहैप्स'। महावीर को पता है कि मोक्ष है, लेकिन उनको यह भी पता है कि अहिंसक वक्तव्य स्यात् के साथ ही हो सकता है। महावीर को यह भी पता है कि स्यात् कहने से शायद आप समझने को ज्यादा आसानी से तैयार हो जायँगे। अगर महावीर कहते कि मोक्ष है, तो वे जितना अकड़ से कहते, आपके भीतर तत्काल उतनी ही अकड प्रतिध्वनित होती और कहती--कौन कहता है कि मोक्ष है ? मोक्ष नहीं है, बिलकुल नही है । अगर कोई महावीर के प्रतिद्वद्वी गोशालक के पास जाता तो गोशालक कहता--महावीर गलत हैं, मैं सही हूँ। वही आदमी महावीर के पास आता तो महावीर कहते-गोशालक
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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