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________________ महावीर परिचय और वाणी २३३ यदि मंगल की यह धारणा प्राणा की अतल गहराइया मे वठ जाय तो ममगल की सम्भावना कम हो जाती है। जो जैसी भावना करता है धीरे धीरे वह वसा ही हो जाता है । जो हम मांगत हैं वह हमे मिल जाता है । लेकिन हम सदा गत मांगत हैं । यही हमारा दुभाग्य है । हम उसी की तरफ आँख उठाकर देखत हैं जो हम हाना चाहते हैं। अगर आप किसी राजनीति के आस-पास भीड लगाकर दवटठे हा जात हैं तो यह सिफ इस बात की सूचना नही है कि किसी नता का पदार्पण हुआ 1 गहन रूप से यह इस बात को सूचना है कि आप वही राज होना चाहत हैं। हम उसी को आदर देत हैं जो हम होना चाहते बिसी अभिनेता के पास मीड लगाकर खड़े हो जाते हैं तो यह आपकी मोतरी आपला को खबर देती है । आप भी वही हो जाना चाहत है । अगर महावीर ने कहा कि वहो - नीतिक पद पर हैं | अगर आप अरिता मगर । सिद्धा मगर | साह मंगल | देवपिन्नत्ता धम्मो मगल | ता वे इस बात पर बल दे रहे हैं कि तुम यह वह ही तव पाओग जब तुम अरिहत, मिद्ध और साधु होना चाहोगे । या जब तुम यह यहना शुरू करोगे तब तुम्हार अरिहत होने की यात्रा शुरू हो जायगी । और वडी स बडी यात्रा बड़े छाट बदम मे शुरू होती है । धारणा पहा बदम है। भी आपने सोचा कि आप क्या होना चाहा हैं ? जो आप होना चाहत हैं वह सचेतन मन सहा, पर अचेतन में तो अवश्य ही घूमता रहता है । उसी व प्रति आप मा म बादर पैदा होता है जो आप होना चाहते हैं। आप होना चाहत हैं, उसी के सम्बध में आपने मन म चिता वे तु बनते हैं । वही आपने स्वप्ना म उतर आता है, आपका सांसा म सभा जाता है । (८) गरवा और खून व वर्णों में अन्यायाश्रय सम्बध है । महिल थाधार रत म सफेर वणा साइम बहती है कि आपने स्वास्थ्य की रक्षा का मू यी अधिकता है। मगर नावना से भर व्यक्ति के पास वटने पर इन सफेद बणा म १५०० पेट वणतरा बन जाता है । जा व्यक्ति आपके प्रति दुर्भाव रमता है उसके पास वर १६०० कम हो जाते है । ( ९ ) अमरीकी वनानिव बैक्मटर न सिद्ध किया है पोधे अपन मिश्रा पचात है और अपर मनुआ को भा । ये अपने मालिक या पहचानत हैं और जपमाली भी। अगर मालिक मर जाता है तब उनको प्राणधारा क्षीण हा
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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