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________________ नहा सकता, लेकिन जिस दीप पडा है उसे शारम में भी दीस सकता है। उस गाम्य म ही नहा, कद, पत्थर, पहात, दीवार सब म दिसाइ पडता है। यानी यह मवाल फिर शास्त्र का नहा रह जाता । जिसे दिग्वाई पड गया उसे सब म दिखाई पड़ता है। शास्त्र म हम वही पढत हैं जो हम पढ़ सकते हैं, वह हमारे मान की वद्धि नहा करता । अनानी आदमी शास्त्र के सामने खड़ा होकर यह न सोचे कि उसे परकर वह ज्ञानी हो जायगा। हा, जहा नानी को शास्त्र मे नान मिलेगा वही अनानी को अनान ही दिखता रहेगा। और मजा यह है कि मानी शास्त्र मे देखने नहीं जाता, पर अनानी उमे अपना सहारा बना रता है। अक्सर ऐसा होता है कि सुदर आदमी दपण से मुक्त हो जाता है और कुरूप आरमी उसप आस पाम घूमता रहता है। ___ हा माना है किसी दिन मेरे मा श- सगहीन हो जायें आर लोग उन्हें पकडकर शास्त्र बना लें। उसी दिन मरे शा की हत्या हा जायगी। फिर भी, न्यान रह किम किताव का विराधी नहा गाम्न का विरामी हू । फ्तिार दावा नहा करती सत्य दन का । उसका दावा है सिफ सग्राहक हान का । शास्त्र का दावा मिफ सग्राहक होने का नहीं सत्य दने का है। लाओ से की क्तिाव की तरह जो केवल विनम्र सग्रह है वह शास्त्र नहा, मात्र किनाव है। शास्त्र पिसी में कुछ बोलन से नहीं वनता शास्त्र जनता है शताको पक्डन स । महावीर क बोलन स शास्त्र नहीं बना, गणघरा क पबटने से बना है। इमलिए वाणी ही ऐमी कांटा वाली हो, जगारा मे ऐमा मरी हा कि पडना मुशिल हा जाय । लेकिन अगार भी वुम जात हैं, एक न एक दिन रास हो जात है जार पर डनेवाले उहें भी मुटठी म पाड रेत हैं। इसी कारण नाना को पुराने नानिया की दुश्मनी म वार नार सडा हाता परना है । सब पूछो ना यह दुश्मनी नहीं है, मित्रता है । आर इसम वडी मित्रता हो नहा मानो क्यारि इस भाति जा रास पकड री गइ है उसमे नानिया द्वारा ही छुट्यारा हाता है। इसलिए जिम महावीर स प्रेम है वह जनिया व खिलाफ सहा हाराही । अगर महाबार भा लोट जाय ता उहें भी उनक सिराफ गटा हा पडेगा क्यापि उहाने जा दिया था वह जीवित अगारा था वह पपडा नहीं जा सा था सिफ किया जा सरता था समगा जा सकता था। यह अब रास रह है । लागा ने उस परड लिया है और व उस पक्ड वठ गए है । न बुद्ध महावीर के सिताफ हैं न महावार कृष्ण न । खिलाफ हैं गास्त्र वा जान ये । और जहाँ भी शास्त्र बन जाता है वहा सत्य मर जाता है। इसलिए लडाइ जारी रहती है । रिसी मानी पर वह सम नहीं हो जाता। आनाले मानिया का अतीन मानिया का राइन करना ही हागा। यह वडा कार पृय है पिन प्रेम इतना पठार भी होता है।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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