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________________ महावीर परिचय और वाणी १९५ है, वहीं हैं, बल्कि कई मामला में व आपसे भी ज्यादा गम्भीर हैं। मैं तो गाच ही नही सपना वासी भी गम्भार हो सकता है । सन्यासा अगर गम्भीर है तो इसका मतर है कि वह सिफ गोपासन लगाकर सडा हा गया है ससारी है । गम्भीरता का मतलब है कि ससार वडा मायक है, नाममविया का यह जा जाए है वह वडा मीमती है । परिग्रह नासमझी है परिग्रह व सिलाफ साधा गया त्याग भी नाममनो है । चीजा का पहना पागत्पन है तो चीना को छोडकर भागना कम पागलपन नही । चीजा ये प्रति मोहग्रस्त होना पागलपन है तो चीजा के प्रति विरक्त होना पापन नहीं है । यति परिग्रही पागल है तो सयासी भी उससे कम पागल नहा है । सासा मत हैं और मुझसे कहते हैं कि उठना सिन्याम सर वहा हमने भूल तो न वो भाविक है । जो भाग रह ह वे भी कम परवान नही हैं। वे सायासिया वे पर छून रहने हैं जाकर । व साचत हैं निसन्यासी बडे जानद भ होते हैं । सयासी एकान्त म सदिग्ध होता है, भीड म आश्वस्त | जब लोग उसने पैर छूते हैं तब पक्का हो जाता है कि लाग आनंद में नहीं हैं-यदि होते ता उसने पैर न छूत । अगर किसा या अपना झूठा मयास बनाए रखना हो तो भीड अनिवाय है । कई दफा मन म ऐसा मन्दह 7 एम सह वा उठना स्वा नही, न तो वस्तुएँ पकडने योग्य है, न छोडने योग्य। इसलिए अपरिग्रहमा अप नताविराग है और त्याग । यह में इसलिए वह रहा हूँ कि कही आप ससार या छावर भागने न लगें, वहीं आप घरवार वा छाटकर जंगल की राह न लें। अपरिग्रह का मतलब मालवियत में भावमा त्याग है । अपरिग्रही वह है जिसम मालकियत या काईना न रहा । उसने बाहर की दुनिया में मालवियत साजनी यद वरदो । इमवाय अथ नही कि बाहर की दुनिया का छाडवर वह भाग गया । नागेगा यहाँ ? जहाँ वह जायगा वहा वारा दुनिया है । सत्यागी हायर वह युग में नीच वठ जायगा सही परन्तु ज्याही कराई पर रहेगा कि हाय से, इयक्ष व पीचे हम घुना रमाना चाहत है व्याहा यह महगा पिब मेरा यह वाग, इस पर मरा पहले सब है यह का मरा है यह मंदिर मेरा है यह आश्रम भरा है। परिग्रह से भागा हुआ आदमी रिपरिपदापर महागा विपरिग्रह क्या है । जनता उसना शेवगा, अनुयाया उगवा तसा गुल्म रात गांजेगा। वह अनुयायी इरठा वरन एनेगा । जा मजा दिगो पा तिजोरा व मामन दाया गिनन में आता है, वही मजा उगरा माया योगिन में आता है। जिदगी वामन है और जब यह नहीं जहाँ है यहीं उन गान गतो । जाती है तो अचार हमपात है कुछ माजे एकदम विदा हो गए। न ही जी महा
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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