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________________ १८४ महावीर : परिचय और वाणी जो बडी हिसाएँ हई है वे व्यक्तियो द्वारा नहीं, वरन् समाजो द्वारा हुई हैं । बगर किसी मुसलमान को हम कहे कि इस मन्दिर मे आग लगा दो तो अकेला मुसलमान, व्यक्ति की हैसियत से, पच्चीस बार सोचेगा। लेकिन दस हजार मुसलमानो की भीड मे वह मन्दिर मे बाग लगाने को तैयार हो जायगा, क्योकि दस हजार की भीड एक समाज है। हिन्दू भी मस्जिद के साथ ठीक यही कर सकता है। समाज का मतलब है अपनो की भीड । और दुनिया मे हिमा मिटानी तब तक मुश्किल है जब तक हम अपनो की भीड बनाने की जिद बन्द नहीं करते । अपनो की भीड का मतलव हे एक ऐसी भीड जो सदा परायों के खिलाफ सती हो। इसलिए दुनिया के सभी सगटन हिंसात्मक होते हैं, चाहे यह गंगटन परिवार ही क्यो न हो । परिवार दूसरे लोगो के खिलाफ खडी की गई इकाई है। राज्य दूसरे राज्यो के खिलाफ खडी की गई राजनैतिक इकाई है। मनुप्य उस दिन अहिंसक होगा जिस दिन वह निपट मनुष्य होने को राजी होगा। इसलिए महावीर को जैन नहीं कहा जा सकता, और जो उन्हें ऐसा कहते हो वे महावीर के साथ अन्याय कर रहे है । कृष्ण को हिन्दू नहीं कहा जा सकता । वे किसी समाज के हिस्से नहीं हो सकते। वे दूसरी इकाइयो के साथ जुडने को राजी नहीं है। सन्यास समस्त इकाइयो के साथ जुड़ने से इनकार है। असल मे सन्यास इस बात की खबर है कि समाज हिसा है। अपनो का चेहरा भी हिंसा का सूक्ष्मतम स्प है, इसलिए जिसे हम प्रेम कहते है वह भी अहिंसा नही बन पाता । अहिता उस क्षण शुरू होती है जिस क्षण दूसरा नही रह जाता। यह नहीं कि वह अपना है । वह है ही नहीं। दूसरो के दिखाई पड़ने का कारण दूसरो का होना नहीं है। दूसरो के दिखाई पड़ने का कारण वहुत अद्भुत है । दूसरा इसलिए दिखाई पडता है कि मुझे अपना कोई पता नही है । अपने आत्म-अज्ञान को मैने दूसरे का ज्ञान वना लिया है । हम दूसरे को देख रहे है, क्योकि हम अपने को देखना नही चाहते । दूसरे का होना आत्मअज्ञान से पैदा होता है। दूसरे से मेरा मतलब दूसरे की चेतना से नही है, दूसरे के शरीर से है। न आपकी चेतना से मुझे कोई प्रयोजन है और न मुझे आपकी चेतना का कोई पता है । जिसे अपनी ही चेतना का पता नही, उसे दूसरे की चेतना का पता हो भी कैसे सकता है ? मुझे आपके शरीर का पता है और अपने शरीर का पता है। अगर ठीक से कहे तो कह सकते है कि हिंसा दो शरीरो के बीच का सम्बन्ध है। दो शरीरो के वीच अहिंसा का कोई सम्बन्ध नही हो सकता । गरीरो के बीच सम्बन्ध सदा हिंसा का होगा। ___कई प्रेमियो ने अपनी प्रेयसियो की गर्दन दवा डाली है । प्रेम के क्षणो में ___मार ही डाला है | अदालते नहीं समझ पाई कि यह कैसा प्रेम है । लेकिन
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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