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________________ १८२ महावीर : परिचय और वाणी धर्म परम स्वास्थ्य है, इसलिए वर्म को भी कोई परिमापा नहीं हो नकती। बीमारी की परिभापा हो सकती है, स्वास्थ्य की नही । चर्चा मिर्फ अधर्म की हो मकती है, धर्म की नहीं । स्वास्थ्य को जाना जा सकता है, उसे जिया जा सकता है, स्वस्य हुआ जा सकता है, लेकिन उसकी चर्चा नहीं हो गाती । इसलिए सभी धर्मशास्त्र | वस्तुत अवर्म की चर्चा करते है। हिंसा को मैं पहला अवर्म मानता हूँ, और जो हिंसक है उनके लिए यह पहला व्रत है। ऐसे भी हम झिक हैं। हमारे हिंसक होने में भेद हो सकते है, कारण कि हिमा की अनेक पर्ते हैं, इसकी इतनी सूक्ष्मताएँ हैं कि उसे पहचान पाना मुश्किल होता है । कमी-कभी ऐसा भी होता है कि जिसे हम हिला कहते हैं वह अहिंसा का बहुत स्थल रूप होता है और जिसे हम अहिंसा पाहते है वह हिमा का ही बहुत सूक्ष्म रूप होता है। उदाहरण के लिए मैं गांधीजी वी अहिंसा को हिंसा का सूक्ष्म रूप कहता हू ओर कृष्ण की हिंसा को अहिंसा का स्थूल रूप मानता हूँ। हिमक के लिए ही अहिंझा पर विचार करना जरूरी है। मलिए यह समझ लो कि दुनिया में अहिंसा का विचार हिंसको की जमात से आया। जैनो के चोवीन तीर्थकर क्षत्रिय थे। उनमे एक भी न तो ब्राह्मण था और न वैश्य । बुद्ध भी क्षत्रिय थे। दुनिया मे अहिमा का खयाल वहाँ पैदा हुआ जहाँ हिंसा धनी थी, सपन पी। जो चौबीस घटे हिमा मे रन है उन्हे ही यह दिखाई पड़ता है कि हिंमा हमारा स्वभाव या हमारी अन्तरात्मा नहीं है। में यह मानकर चलूंगा कि हम हिंसक लोग इकट्ठे हुए है । जव में हिंसा के अनेक-अनेक रूपो की बात करूंगा तब आप समझ पायेंगे कि आप किस रूप के हिंसक है। और अहिंसक होने की पहली शर्त है, अपनी हिंसा को उसकी ठीक-ठीक जगह पर पहचान लेना, क्योकि जो व्यक्ति हिंसा को ठीक से पहचान लेता है, वह हिनक नही रह जाता। हिसक रहने की एक ही तरकीव है कि हम अपनी हिंसा को अहिंसा समझने जायें । इसलिए असत्य सत्य के वस्न पहन लेता है । असल मे असत्य को जव भी खडा होना हो तो उसे सत्य का चेहरा उधार लेना ही पड़ता है । एक सीरियन कथा कहती है कि एक बार सौदर्य की देवी पृथ्वी पर उतरी और एक झील मे स्नान करते हुए दूर निकल गई। तभी कुरूपता की देवी को मौका मिला, उसने सौदर्य की देवी के कपडे पहने और वह चलती बनी। कथा कहती है कि तभी से सौदर्य की देवी उसका पीछा कर रही है और खोज रही है उस कुरूपता को जिसने उसके वस्न पहन लिये है। कुरूपता अब भी सौदर्य के वस्त्र पहने हुए है। हिंसा को भी खडे होने के लिए अहिंसा बनना पडता है। इसलिए अहिंसा की दिशा मे जो पहली बात जरूरी है वह यह है कि हिसा के चेहरे पहचान लेने जरूरी है, खासकर उन चेहरो को पहचान लेना जरूरी है जो उसके अहिंसक चेहरे हैं । दुनिया में कोई भी पाप सीधा धोखा देने मे असमर्थ है। पाप को भी पुण्य की आड
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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